सरकारें बदलती रहती है गरीबों की स्थिति कभी नहीं बदलती। गरीबी हटाओ का नारा नेहरू जी व इंदिरा जी के समय से चल रहा है, नीतियां बनी है तो कुछ स्थितियां भी बनी है राजीव जी और अटल जी से होकर आज मोदी जी तक पहुंची है। इसबार उन्होंने भी गरीबी मिटाने का संकल्प लिया है। मगर यह इतना आसान काम नहीं है। आरोप प्रत्यारोप केवल लोगों को गुमराह करने के लिए और चुनाव जीतने का साधन होते हैं। सच में यह होता है कि कोशिश सब करते हैं बेहतर करने की मगर जो करना चाहिए वो कोई करना भी नहीं चाहता है अन्यथा अगला चुनाव किस मुददों पर लड़ेंगे और झंडा, डंडा उठाने वाले कहाँ से आएंगे।
गरीब होंगे तो सपने बेचे जा सकते हैं, अशिक्षा होगी तो दिमाग खरीदे जा सकते हैं और अव्यवस्था होगी तो विचार कुचले जा सकते हैं। यह नीति राजा रजवाड़ों से चलती आ रही है और हमेशा कायम रहेगी। अन्यथा नियत सही हो तो एक साल के अंदर देश की समस्त गरीबी खत्म हो सकती है। नेक नियत और एक नीति से सारी विपत्ति कट सकती है। हमारे देश मे पैसों, अवसरों, विकल्पों, साधनों और संसाधनों की कमी नहीं है बस इनका सदुपयोग नहीं किया जाता है। व्यवस्थित तरीके से काम करने की बहुत कमी है। नीति निर्माताओं के मन में न्यायिक चिरित्र का अभाव अत्यधिक है। इसलिए गरीबी मिटाना 22वीं सदी में भी एक नारा ही रहेगा। आर पी विशाल।।