आखिर अंधविश्वास है क्या, इसकी क्या परिभाषा है। क्या धार्मिक आस्था एक अंधविश्वास है।
क्या ज्योतिष एक अंधविश्वास है। अंधविश्वास का यदि संधिविच्छेद किया जाये तो यह है – अंध + विश्वास।
अंध – अँधा यानि की बिना सोचे विचारे कार्य करना। जिस प्रकार एक अँधा व्यक्ति रास्ते पर चलने के लिए एक छड़ी या, दुसरे व्यक्ति पर निर्भर रहता है।
उसी प्रकार अंध विचारधारा का व्यक्ति भी बिना सोचे समझे कुछ विचारो के पीछे भागता है…बिना एनालिसिस किये।
विश्वास – किसी भी विचारधारा, व्यक्ति, पार्टी, धर्म, रीति-रिवाज का अनुसरण करना विश्वास है, और दोनों शब्द जब जुड़ जाता है तो अंधविश्वास हो जाता है।
धर्म – अक्सर सभी धर्मो के अनुयायी यही बोलते है की हमारे धर्म की पुस्तक ईश्वर ने भेजी है या आसमान से आई है। क्या ये सच हो सकता है?
आसमान में कौन सा प्रिंटिंग मशीन है जिससे किताब छपती है और नीचे गिरती है फिर अब क्यों नहीं गिरती??
क्या ईश्वर कोई पुस्तक सभी धर्मों के लिए भेजेगा वो भी अलग अलग लॉजिक के साथ।
क्या विज्ञानं सभी धर्मो के लिए अलग अलग है, क्या मैथ अलग अलग धर्मो के लिए अलग अलग है, नहीं। जो सत्य है वो सत्य है।
वो 100, 500,,1000,,5000,,10000 साल पहले भी सत्य था आज भी और हमेशा सत्य रहेगा। मैथ में नए लॉजिक सोचे जा सकते है लेकिन 1+1=2 ही रहेगा वो 3 नहीं होगा।
उसी तरह अगर धार्मिक किताबें ईश्वर ने भेजी होती तो सभी धर्म में एक ही बात लिखी होती बदल बदलकर नहीं।
पूरे विश्व में एक धर्म होता न कि अलग-अलग धर्म और अलग अलग मान्यताएं। धर्म में अलग अलग मान्यताएं जोड़ी जा सकती हैं लेकिन सारे धर्मों की किताब एक ही होती।
किसी भी बात को सत्य मान कर बैठना भी अंधविश्वास है, बिना एनालिसिस किये कोई भी बात को मानन भी एक तरह का अंधविश्वास है।
किसी भी पुराने लॉजिक को नए नियमो के साथ परिवर्तित करके जो मानव कल्याण के लये अच्छा हो, जो तर्क पर खरा उतरा हो,
जो विज्ञान के आधार पर हो तभी विश्वास करें अथवा उस बात को नकारना ही अच्छा है।