Kamaljeet Jaswal's Album: Wall Photos

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पाँचवीं शती के आरंभ में फाहियान भारत आए थे। उन्हें चीन के बौद्ध - ग्रंथ अधूरा और क्रमभ्रष्ट लगे थे। वे भारत आकर बौद्ध - ग्रंथों की वास्तविक प्रति प्राप्त करना चाहते थे। मगर बौद्ध - ग्रंथ भारत में भी दुर्लभ हो गए थे। संस्कृत में बौद्ध- ग्रंथों की बहुत - सी सामग्री मिल रही थी। इसीलिए फाहियान ने संस्कृत सीखी थी।

भारत से अंततोगत्वा निराश होकर फाहियान बौद्ध - ग्रंथों की खोज में सिंहल गए। वहाँ सिर्फ 4 पुस्तकों की प्रतियाँ मिली थीं।

यह तथ्य प्रमाणित करता है कि चीन, भारत और सिंहल जैसे देशों में भी मूल पालि साहित्य दुर्लभ होते जा रहे थे, जो कभी बौद्ध धर्म के केंद्र थे।

पूरे पालि - साहित्य पर आँख बंद कर विश्वास नहीं किया जा सकता है। मिलावट पालि साहित्य में भी है। जब 5 वीं सदी में ही बौद्ध - ग्रंथ दुर्लभ हो गए थे तो आज 21 वीं सदी में पालि - साहित्य को पढ़कर बगैर विवेचन - विश्लेषण किए बहुत कुछ दावे के साथ कहना ठीक नहीं है।

पालि साहित्य में भी सुत्त-निर्धारण और पाठोद्धार की समस्याएँ हैं। शब्दों में तोड़ - मरोड़ है। कई प्रक्षिप्त कथाएँ घुसेड़ी गई हैं। बतौर उदाहरण बुद्ध का विश्वामित्र के आश्रम में पढ़ने जाना या फिर कोशकारों द्वारा धम्म का अर्थ धर्म किए जाना। ऐसे सैकड़ों अप्रामाणिकता के उदाहरण बौद्ध साहित्य में मिलते हैं। इन सबका निदान श्रद्धा से अधिक वैज्ञानिक तरीके से किया जा सकता है।