हम जितना चाहें मुहं चुरा लें लेकिन कुछ चीजों के लिए नजरें मिलानी ही होगी अन्यथा चीजें बढ़ी बनती ही जाएंगी और फिर एकदिन मुहं छुपाने के लिए ओट की जरुरत पड़ेगी। भारत की सच्चाई है कि भारत में हर क्षेत्र में गन्दगी ज्यादा है और सफाई कर्मचारी कम। सफ़ाई कर्मचारी केवल झाड़ू उठाने वाले या सीवर साफ करने वाले ही नहीं सामाजिक बुराई मिटाने वाले भी सफ़ाई कर्मचारी ही हैं। भारत ने जो सबसे बड़ी गलती की वह यह कि सफ़ाई को जातियों से जोड़ दिया परिणाम यह हुआ कि सफ़ाई के प्रति हीन भावना बढ़ने लगी।
गाँधीजी ने सफाई अभियान चलाया और उनका कहना था कि साफ सफाई करने से भगवान खुश होते हैं मगर उन्होंने कभी हिम्मत नहीं की कि सवर्णों के मोहल्लों में यह अभियान चलाते या उन्हें यह ज्ञान देते क्योंकि यह जरूरी था। मजदूर से जाकर कहा जाय कि इंसान को खूब मेहनत करनी चाहिए तो उसके लिये इन शब्दों का क्या महत्व क्योंकि उससे ज्यादा मेहनती दूसरा कौन होगा? इसी तरह सफ़ाई कर्मचारियों की बस्ती में जाकर सफ़ाई अभियान चलाना, या सफ़ाई से ईश्वर खुश होंगे ऐसे भाषण देने से बदलाव सम्भव नहीं है।
भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और हम विश्व के हर मामलों में मुकाबला कर रहे हैं मगर गटर साफ करने के लिए आज भी मनुष्य को बिना किसी सुरक्षा के उतरना पड़ता है। हाथों से मानव मल साफ करना पड़ता है यकीनन उन्हें मजा तो नहीं आता होगा ऐसा करते हुए। यह भारत की नाकामी ही नहीं बल्कि शर्मिंदा होने के लिए बहुत बड़ी वजह है जिसपर एक एक को एक दिन शर्मिंदा अवश्य होना पड़ेगा। मैं इस व्यवस्था का हिस्सा नहीं हूं इसलिए शायद मुझे ज्यादा लेना देना नहीं है मगर बुलेट ट्रेन पर यदि मैं गौरवान्वित होऊं तो गटर की व्यवस्था पर शर्मिंदा होना बनता है।
आर्टिकल 15 फ़िल्म में दर्शाया गया है कि जितने सैनिक सीमाओं पर शहीद होते हैं उससे अधिक गटर की सफाई करने से मर जाते हैं। उनकी कोई सुध नहीं लेता है। मुआवजा तक निश्चित नहीं होता है। भारत जितनी तरक्की कर लेगा मगर याद रखना सिर्फ इन सफाई कर्मचारियों ने यदि एक महीने के लिए झाड़ू फेंक दी तो पूरा भारत गटर बन जायेगा। उसका नमूना देखना हो तो इसी फिल्म में उसका एक दृश्य भी देख सकते हैं। गांधी जी का असहयोग आंदोलन यदि देशहित में था तो एकदिन यह असहयोग आंदोलन फिर होगा। कारण यह है कि आज भी सफ़ाई कर्मचारी की जाति निर्धारित है जबकि बड़े बड़े बजट के बावजूद उनकी सुरक्षा, व्यवस्था और सुविधा का कोई प्रबंध नहीं।
भारत मे सफाई कर्मचारी यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय भी होते तो आजादी के समय से मशीनें उपलब्ध हो चुकी होती यह देश की कड़वी सच्चाई है। एक जाति के लोग पूरे देश मे झाड़ू, तसला उठाकर चलते हैं ऐसा क्यों? जबकि गरीबनतो कोई भी हो सकता है मगर सवर्ण गरीब यह काम करते हुए नहीं मिलेगा क्योंकि हमने इसे जातिय कर्म बनाया हुआ है। जो करते आये हैं यह काम उन्हें करना ही क्योंकि वो ऐसे ही करते आये हैं। हम चाँद और मंगल पर जाने की ढींगे हांक सकते हैं पर गटर के पास जब गुजरो तो ख्याल आना जरूरी है कि मंगल पर जाना तरक्की नहीं अभिमान था और इसी अभिमान की वजह से गट्टर के द्वार खुले ही रह गए। आर पी विशाल।।