मिट्टी का स्तूप ... पत्थर का स्तूप ...ईंट का स्तूप ... संगमरमर का स्तूप ... मनौती स्तूप ... छोटा स्तूप ... मझोला स्तूप ... बड़ा स्तूप ... गोल स्तूप ... चौकोर स्तूप ... अति प्राचीन स्तूप ... प्राचीन स्तूप ...वेदी का स्तूप ...बिना वेदी का स्तूप ... सीढ़ीदार स्तूप ... बिना सीढ़ी का स्तूप !
सभी अलग - अलग प्रकार के सैकड़ों स्तूपों को इतिहासकारों ने मौर्य काल से लेकर कुषाण काल के चंद पन्नों में समेट लिया है।
जबकि इतिहास गवाह है कि सिंधु काल में भी स्तूप था और पूर्व मौर्य काल में भी स्तूप था।
पिपरहवा का स्तूप मौर्य काल से पहले का है।
खुद मौर्य काल में नए स्तूप बने और कई पूर्व मौर्य काल के स्तूपों की मरम्मत हुई, जिसमें निग्लिवा सागर का स्तूप भी शामिल है।
मगर एक कथा कहकर 84000 स्तूपों को सिर्फ मौर्य काल में घुसेड़ दिया जाता है।
भारत और भारत के बाहर भी जो बड़े पैमाने पर स्तूप मिलते हैं, वे सभी मौर्य काल के बाद के नहीं हैं
बल्कि अनेक सिंधु घाटी और मौर्य काल के बीच के भी हैं। मगर इतिहासकार गौतम बुद्ध से पहले स्तूप होने की बात सोचते ही नहीं हैं।
परिणामतः वे मौर्य काल से पहले के बने सभी स्तूपों को भी खींचकर मौर्य काल तथा उसके बाद लाते हैं।
यदि वे ऐसा नहीं करते तो सिंधु काल से लेकर मौर्य काल तक कहीं भी स्तूपों की श्रृंखला नहीं टूटेगी। -
#इतिहास_की_हत्या_क्यों_की??
विश्व प्रसिद्ध महान इतिहासकार व भाषा वैज्ञानिक
#Dr_Rajender_Prasad_Singh सर