प्रमोद कुमावत Pramod kumawat's Album: Wall Photos

Photo 148 of 1,043 in Wall Photos

हँसिए #MeToo पर, हम देख रहे हैं कि एक सेंसेटिव चीज पर आप कितना हँस सकते हैं!

आज से लगभग साल भर पहले हम दिल्ली की आईएएस फैक्ट्री कहे जाने वाले, मुखर्जीनगर के बेहतरीन कोचिंग संस्थान के क्लासरूम में बैठे थे। इतिहास की क्लास चल रही थी, फैकल्टी ने कहा-

‘स्त्रियों के विधवा हो जाने पर उनका मुंडन कर दिया जाता था।’
….और देश की बेहतरीन परीक्षाओं में से एक, चुने जाने के बाद देश को सँभालने का दारोमदार उठाने के लिए उत्सुक 700 विद्यार्थियों की क्लासरूम में कम से कम 690 हँस रहे थे; जिसमें लड़के और लड़कियाँ दोनो शामिल थे। फैकल्टी मेंबर ने कुछ भी नहीं कहा! दुख मिश्रित आश्चर्य से!
पहले हैरानी, फिर गुस्सा और फिर दुःख और निराशा के भाव लगातार एक के बाद एक आते चले गए। जिस समाज में 20-30 वर्ष के अधिकतर युवाओं की सोच ऐसी हो उस समाज में #MeToo चल रहा हो तो इससे ज्यादा क्या उम्मीद कर सकते हैं।

बहुतों के सवाल हैं कि,
“पहले क्यों नहीं बोला?”

तो इसका जवाब है, पहले इस स्थिति में नहीं थे कि बोल सकें, इतनी हिम्मत नहीं थी। देख चुके थे किसी को बोलते हुए और बोलने के बाद पूरे परिवार से, समाज से दुत्कार मिलते हुए। इसलिए नहीं हुई हिम्मत। नहीं था इतना सामर्थ्य कि झेल सकते थे इतनी दुत्कार, कर सके विरोध। आज है, आज है क्योंकि आज अपने पैरों पर खड़े हैं या खड़े हो सकते हैं।आज मानसिक रूप से सक्षम हैं, जानते हैं कि सही हैं, ये भी कि अकेले चल सकते हैं। नहीं थी तब इतनी हिम्मत जब 5/10/12/15/17 साल के थे।
नहीं कह पाए, क्योंकि हाथ जोड़कर कहा गया कि ‘ये रिश्ता बचा लो प्लीज़।’
नहीं थी इतनी हिम्मत जब कैरियर की शुरूआत किए थे कि शुरू करने से पहले खत्म हो जाए और फिर गिर पड़े, इसलिए नौकरी छोड़ दिए मगर बोल नहीं पाए, बहुत बार क्योंकि इसके बाद आस-पास की दूसरी कंपनियों में भी ‘ऐसी लड़कियों’ को नौकरी नहीं दी जाती जो विरोध करती हैं, जो कह देती है कि, हाँ वहाँ का बाॅस ‘ऐसा’ है। नही कह पाए, क्योंकि नहीं दिया गया इतना स्पेस, इतनी सहूलियत कि कहने के बाद एक नाॅर्मल लाईफ जी सकें। और कुछ????

आप हँसिए #Me_Too पर, जोक बनाइए, हम देख रहे हैं कि एक सेंसेटिव चीज पर आप कितना हँस सकते हैं! कितना मज़ाक उड़ा सकते हैं! हम देख रहे हैं कि ये हँसने वाले कितने खोखले हैं कि उनके अंदर कुछ भी उगने की कोई सँभावना नहीं है, अलबत्ता उसमें जहरीला साँप भले रहता है।

याद आता है कि बाबा के श्राद्ध में गाँव में रहने वाली दीदी बोली थीं कि, ‘यहाँ बहुत लोग अइतौ नुनु जे बाप-चाचा, बाबा के उमर के होयतउ, लेकिन सबसे बच के रहिहो, सबके नज़र नय रहय छय बढ़िया, कोय अक्लला मां बोलयथोन त नय जय हो” (बाबू यहाँ तुम्हारे पिता-चाचा, दादाजी के उम्र के लोग आएँगे, लेकिन बच कर रहना सबकी नज़र अच्छी नहीं, कोई अकेले में बुलाए तो मत जाना) तब नहीं समझ आया था बहुत, लेकिन आया बाद में।

आप हँसिए, क्योंकि आपके जीवन में हँसने के स्वाभाविक मौके इतने कम आते हैं, कि आप किसी भी बात पर हँस सकते हैं… क्योंकि आप भी उन्हीं कुंठित लोगों में से हैं, जो इस बात पर हँस सकते हैं कि, ‘विधवा होने पर स्त्रियों का मुंडन कर दिया जाता था।’ शर्म की बात पर ताली पीटने वाले समाज से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है! आप जैसों से ना कोई उम्मीद थी, न है। हाँ, सहानुभूति जरूर रहेगी।