जीवन में कई बार अनपेक्षित परिस्थितियाँ आती हैं, जिनके कारण अपने प्रति विश्वास डगमगाने लगता है और व्यक्ति उन परिस्थितियों में किंकर्तव्य विमूढ़ होकर उपलब्ध साधनों का उपयोग करने में संकोच करने लगता है अथवा यह सोचने लगता है कि वह इन साधनों के योग्य नहीं है। एक घटना नैपोलियन के सम्बन्ध में विख्यात है, उसका एक सैनिक अपने सेनापति के पास कोई महत्वपूर्ण सन्देश लेकर भेजा गया था। सन्देश इतना महत्वपूर्ण था कि जितना जल्दी हो सके उसे पहुँचाना और उसका उत्तर लेकर तुरन्त वापस आना आवश्यक था। सौंपे गये दायित्व को तत्परता से पूरा करने के लिए उस सैनिक ने अपना घोड़ा इतनी तेजी से दौड़ाया कि गंतव्य स्थल पर पहुँचते ही उसने दम तोड़ दिया।
नैपोलियन ने उसकी कर्तव्यनिष्ठा को सराहा तथा पत्र का उत्तर लेकर उसी शीघ्रता से जाने के लिए कहा लेकिन सैनिक का घोड़ा तो मर चुका था। नैपोलियन को यह मालूम था। सैनिक को असमंजस में देखकर वह बोला, यह लो मेरा घोड़ा और जल्दी से यह उत्तर ले जाओ।’ सैनिक भौंचक्का होकर अपने सेनापति की ओर देखने लगा। उसने कहा, ‘लेकिन श्रीमान्...........’ सैनिक ने यह दो शब्द ही कहे थे कि नैपोलियन बीच में टोकते हुए बोला, ‘मैं जानता हूँ तुम क्या कहना चाहते हो? पर याद रखो कि दुनिया का कोई भी घोड़ा ऐसा नहीं है, जिसकी सवारी तुम न कर सको।
घटना छोटी-सी है, पर उन सभी लोगों के लिए लागू होती है जो स्वयं को किसी महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए अयोग्य समझते हैं। दुनिया उस सिपाही जैसे असंख्य लोगों से भरी पड़ी है जो यह सोचते हैं कि अधिकांश सुख उनकी पहुँच से बाहर है। इस सम्बन्ध में एक विचारक का कथन है कि, ‘दुनिया के कई लोग अपने आपको उन सौभाग्यशाली लोगों से अलग समझते हैं जो महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कर चुके हैं। ऐसा सोचना कितना हानिकारक है, इसका अनुमान सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऐसे विचार मात्र व्यक्ति को कई ऊँचाइयों पर पहुँचने से रोक देते हैं। अपने आपको बौना समझने वाला व्यक्ति देवता कैसे बन सकता है?”