हाॅ
सचमुच कितना मासूम
कितना शीलमयी हैं पुरूष
चलो माना कि जींस पहनी
अलकाएॅ
ज्वाला भड़काती है
चलो माना साड़ी से भी
सुन्दरता झलक जाती है
चलो माना सलवार में ढकी
कि चुनरी उड़ जाती है
दोष कहाॅ नर कि की उनकी दृष्टि
उसी वक्त औरत पर पड़ जाती है
भीनी मीठी सी सुगंध इत्र की इनको बहकाती है
पर वही इत्र इनके बहने भी तो लगाती है
वो भी जीन्न सलवार या साड़ी में ही तो नजर आती है
तो फिर नयन वही मर्दो के
क्यों नही अपनी बहनो पर लार लपकाती है
तुम तो नजर से हरण करते अस्मत का
बताओ कितनी औरते बलात्कार कर जेल जाती है
प्रतिशत की दर से देख लो
आज भी इस मामले में शून्य नजर आती हैं
सच पुरूष मासूम है जो कच्ची कलियाॅ
छह माह की इनको संमोहित कर जाती है
हमने तो सुना है कि माह भर की छोरी भी भड़काऊ वस्त्र में इनको उकसाती है
सच मे दोषी है नारी जो तकलीफ सहकर
प्रसव पीड़ा की ऐसे बेटे जन जाती है!!