पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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जब एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने थे तो एक बार अब्दुल कलाम के कुछ रिश्तेदार उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आए. कुल 50-60 लोग थे. स्टेशन से सब को राष्ट्रपति भवन लाया गया जहां उनका कुछ दिन ठहरने का कार्यक्रम था. उनके आने-जाने और रहने-खाने का सारा खर्च कलाम ने अपनी जेब से दिया. संबंधित अधिकारियों को साफ निर्देश था कि इन मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन की कारें इस्तेमाल नहीं की जाएंगी. यह भी कि रिश्तेदारों के राष्ट्रपति भवन में रहने और खाने-पीने के सारे खर्च का ब्यौरा अलग से रखा जाएगा और इसका भुगतान राष्ट्रपति के नहीं बल्कि कलाम के निजी खाते से होगा. एक हफ्ते में इन रिश्तेदारों पर हुआ तीन लाख चौवन हजार नौ सौ चौबीस रुपये का कुल खर्च देश के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने अपनी जेब से भरा था.
अपना कार्यकाल पूरा करके कलाम जब राष्ट्रपति भवन से जा रहे थे तो उनसे विदाई संदेश देने के लिए कहा गया. उनका कहना था, ‘विदाई कैसी? मैं अब भी एक अरब देशवासियों के साथ हूं.’
इसी तरह एक बार कलाम आईआईटी (बीएचयू) के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि बनकर गए थे. वहां मंच पर जाकर उन्होंने देखा कि जो पांच कुर्सियां रखी गई हैं उनमें बीच वाली कुर्सी का आकार बाकी चार से बड़ा है. यह कुर्सी राष्ट्रपति के लिए ही थी और यही इसके बाकी से बड़ा होने का कारण भी था. कलाम ने इस कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया. उन्होंने वाइस चांसलर (वीसी) से उस कुर्सी पर बैठने का अनुरोध किया. वीसी भला ऐसा कैसे कर सकते थे? आम आदमी के राष्ट्रपति के लिए तुरंत दूसरी कुर्सी मंगाई गई जो साइज में बाकी कुर्सियों जैसी ही थी।
एपीजे अब्दुल कलाम का शुरूआती जीवन
अब्दुल कलाम साहब 15 अक्टूबर 1931 में एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुए थे | उनके पिता जैनुलाबदीन नावों को बनाने और उन्हें बेचने का काम किया करते थे | कहा जाता है कि अब्दुल कलाम शुरू से ही शानदार स्टूडेंट रहे थे | बाद में एक बार जब उन्हें उनके बचपन के बारे में एक सवाल पूछा गया कि उन्हें अन्तरिक्ष विज्ञान में रूचि किस तरह जगी तो उन्होंने बताया कि “ एक बार उन्होंने अख़बार में एक आर्टिकल पढ़ा था तभी से उन्हें विमान विज्ञान में रूची हो गयी | उनकी माता अशियाम्मा एक गृहिणी थी | कलाम अपने चार बहन-भाईयो में सबसे छोटे थे | हालाँकि कलाम के परिवार वाले और उनके पुरखे काफी अमीर थे और उनके पास बेहतरीन जमीन हुआ करती थी क्योंकि सालों से उनका परिवार सामान को नाव के जरिये एक से दूसरे जगह बेचने खरीदने का काम किया करते थे | पर कलाम के बचपन के समय उनका बिज़नस कम हो गया जिसकी वजह से परिवार की आर्थिक हालत खराब हो गयी | यह वही समय की बात जब कलाम साहब को अखबार बेचने का काम भी करना पड़ा ताकि वो परिवार की आमदनी में अपना हाथ बटा सकें | उन्होंने जिन्दगी भर शादी नहीं की और

ये एपीजे अब्दुल कलाम के किस्से प्रेरणा श्रोत व आज के दौर के नेताओं को आईना भी है,एपीजे अब्दुल कलाम की म्रत्यु आज ही यानी 27 जुलाई 2015 को हुई थी।
कलाम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मदरसे से की थी जिस पर मशहूर शायर Mohd Imran Khan (प्रतापगढ़ी)का मुझे एक शेर याद आ रहा है जो यू होता है कि:
निकले ज़ाकिर,फखरुद्दीन,क़लाम मदरसों से,
मत जोड़ो आतंकवाद का नाम मदरसों से।।

क्योंकि शायर को लगता है कि आज जिन मदरसों ने देश के लिए राष्ट्रपति,वैज्ञानिक दिए व जंग-ए-आज़ादी में अहम भूमिका निभाई थी उन्ही मदरसों पर आतंकवाद की शिक्षा देते हैं कि मोहर लगाने में सफ़ेदपोश देरी नही करते हैं।
ख़ैर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को शत शत शत नमन, व अल्लाह अब्दुल कलाम जी को जन्नत नसीब करें व मौजूदा नेताओ को हिदायत दे