औरत बँधी है
तीज से , चौथ से,
छठ से, अहोई से,
निर्जल व्रत से,
अर्घ्य से, पारण से,
मन्नत से, मौली से,
टोटके से, संकल्प से
दो गरम फुलकों से
घी से तर हलुए से
मलाई वाले दूध से
इस्त्री किये हुए कपड़ों से
जिल्द लगी किताबों से
सलीके से दौड़ती गृहस्थी से
घड़ी के काँटों से बँधी सहूलियतों से
कुछ खोने के भय से
अपना और अपनों को
संजो-सहेज कर रखने की आदत से
खुद को भूल जाने की खुशी से
थकान से
जिस्मानी हरारत से
संतानों की सुरक्षा और संस्कार से
पति की छाँव में भरे सुकून से
परिवार की धुरी से
अपेक्षाओं से
औरत बंधी है
अंतर्मन से
अपने दिल से
जिम्मेदारी से, और उस पर कमाल ये कि वो केवल और केवल
हाउस-वाइफ कह कर
रख दी जाती है
एक कोने में