जगत में अटकने के साधन बहुत है ,सुलटने का एक ।
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कैसा विचित्र है यह संसारी प्राणी ,जो सुलटने के नाम पर अटकने के कार्य करता है और भ्रम पालता है धार्मिक होने का ।पुरुषार्थ करता है विपरीत दिशा में ,सार्थक कार्य करने का भ्रम पालकर संसार बढाने की ही तैयारी करता है ।
संसार क्यों है ,संसार भ्रमण रुकेगा कैसे ,इन पर चिंतन नहीं करता और पूजा ,व्रत ,यात्रा ,विधान के माध्यम से धार्मिकता का प्रदर्शन करता है ।यह मनुष्यपना चला जाएगा - कहीं कौआ में उत्पन्न होगा ,कहीं कुत्ते में । इसका भान नहीं है ।
वड़ी दुर्लभता से यह भव मिला ,साथ ही दिगम्बर जैन धर्म मिलना तो अनंत भवों के संचित पुण्य का फल है और हमें आत्मा की महिमा नहीं आती ।जो अदभुत मार्ग मिला है उसकी महिमा नहीं आती ।राग ,अज्ञानभाव ,कर्ताभाव के जंजाल में उलझ कर भव हारने पर तुले है ।