दायित्वों से अपने
होकर फारिक
जब नहीं चाहता मन
करूँ कोई काम
कमाई के खातिर ?
फिर भी
खाली बैठे
नहीं कटेगा समय
इतना सब जानते हुए
होना पड़ता है इन्वॉल्व
घर गृहस्थी में / व्यापार आदि में
न चाहते हुए भी ....
क्या करे ऐसा कुछ गुरुवर !
जिससे बचे रहे
उस पाप के बंध से
जो कमाई के करने के लिए
होते ही होते जीव के
सुना है ऐसा हमने .....
जब तक भाव रहेंगे कमाई के
अपने लिए / बच्चों के लिए
तब तक बंध होता रहेगा
पाप का अवश्य
और
जब सोच लोगे मन से
कमाई के लिए मैं जा रहा
सिर्फ दान देने के लिए अथवा
परमार्थ के कार्यों को करने के लिए
नहीं होगा पाप का बंध उसी समय से
समय लगाने लग जाओगे अपना
समाज को कुछ अपना अनुभव
देने के लिए / शेयर करने से
पलट जाएगा पाप
पुण्य में
क्योंकि
अभिप्राय बदला
बदल गई स्थिति बंध की
इसलिए यदि मन में संतुष्टि
नहीं है जरुरत अब कमाई की
अवश्य भावना रखकर परमार्थ की
करते रहो कार्य व्यापार आदि के
देते रहो उससे दान आदि
पलट जायेगी जिंदगी
बढ़ जायेगी
मन की शांति और समृद्धि
भविष्य को भी
कर लोगे उज्जवल
करके पुण्यार्जन
और क्या चाहिए
सबकुछ तो जब मिल जाएगा
एक ध्येय के ही अंदर ....
जय जिनेन्द्र !
अनिल जैन "राजधानी"
श्रुत संवर्धक
३१.१.२०२०