पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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प्रश्न: -

प्यारे ओशो

आपने कहा कि आप भारत-रत्न होना पसंद नहीं करेंगे। कृपया बताएं कि क्या आप विश्व-रत्न होना पसंद करेंगे ???

उत्तर :-

चैतन्य भारती!

धत तेरे की! जीवन भर में एक तो तुमने प्रश्न पूछा...तुम भी पूर्व-काल के आर्यसमाजी हो, क्या मामला है ???

क्या कचरा बात पूछी! ऐसा भी होता कि तुम बहुत पूछने वालों में होते, तो भी ठीक था। शायद पहला ही प्रश्न है तुम्हारा। और मुझसे जुड़े हो तुम वर्षों से--कोई पंद्रह वर्षों से। पंद्रह वर्षों में यह तुम्हें कुल सूझा प्रश्न! बड़ा आध्यात्मिक प्रश्न पूछा तुमने!

मुझे न तो भारत-रत्न होने में कोई रस है,
न विश्व-रत्न होने में कोई रस है।
मैं तो जो हूं, वह हूं। मैं तो साधारण व्यक्ति हूं। रत्न होने का कोई सवाल ही नहीं है।

रत्न होने से बचना, क्योंकि जो रत्न होते हैं अक्सर रतन सिद्ध होते हैं--पहुंचे हुए रतन!
मुझे कोई रस नहीं है रत्न होने में। और कंकड़-पत्थर ही हैं रत्न, और क्या हैं ???
चमकदार सही। कीमत भी आदमी की नजरों में है। आदमी को हटा लो जमीन से तो कंकड़-पत्थरों में और रत्नों में क्या फर्क रह जाएगा ???
सब बराबर हो जाएंगे। एकदम साम्यवाद आ जाएगा। न कंकड़-पत्थर कम मूल्य के होंगे, न हीरे-जवाहरात ज्यादा मूल्य के होंगे।

मुझे इन खिलौनों में रस नहीं है।
मैं तो जो हूं, पर्याप्त हूं;
जितना हूं, उससे तृप्त हूं;
जैसा हूं, उससे परम आह्लादित हूं।
इसमें न कुछ जोड़ा जा सकता है, न कुछ घटाया जा सकता है।
इस सत्य को जान लेने को ही तो मैं भगवत्ता की उपलब्धि कहता हूं--कि जब कुछ जोड़ा न जा सके, कुछ घटाया न जा सके; जब तुम्हारा होना परिपूर्ण तृप्तिदायी हो।

मुझे न कोई पदवी चाहिए,
न कोई सम्मान चाहिए,
न कोई सत्कार चाहिए,
न कोई सिंहासन चाहिए,
न कोई पुरस्कार चाहिए।
मुझे तो मिल गए सब पुरस्कार! जिस दिन अपने को पाया, उस दिन सब पा लिया।
मुझे तो मिल गईं सब पदवियां। मुझे तो परमपद उसी दिन मिल गया। जिस दिन अपने भीतर विराजमान हो गया, उससे बड़ा फिर कोई सिंहासन नहीं है।
जिस दिन अपने भीतर बैठना आ गया, उस दिन बस सब सिंहासन छोटे पड़ गए, सब रत्न फीके हो गए। जब से अपने को देखा है, रत्नों की तो बात छोड़ो, चांदत्तारे-सूरज भी फीके हो गए।

बच्चों जैसी बातें नहीं पूछा करो।

ओशो
पिया को खोजन मैं चली-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-07 से... !!