वर्तमान सीता की पुकार
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हे राघव......!!!!
परित्याग मुझे अब नहीं चाहिये,
न्याय की जग में आशा है ।
मैं अब नहीं जलूँगी अग्नि कुण्ड में,
मान की जग में आशा है ।
पतिव्रता धर्म पालन हेतु,
मैं वन-वन संग-संग भटकी ।
हर दुख झेला हर कष्ट सही,
किंतु पति प्रेम से नहीं डिगी ।
हे राम मेरे करुणानिधान,
तब करुणा क्यों रह गयी धरी?
जब धधक रही थी अग्नि कुण्ड,
उस मध्य मुझे कर दिये खड़ी!
जग, लोक-लाज की चिंता में,
कैसे हरि मेरा हित भूले ।
मैं पतिव्रता हर बार रही,
प्रभु क्षण-क्षण पत्नीव्रत भूले ।
नारी हूँ कोई वस्तु नहीं,
जिस पर हर कोई राज करे ।
कोई घमंड में हर लेवे,
कोई मर्यादा में त्यागे ।
हूँ सहनशील, तन से कोमल,
मन में प्रीती का कमल खिला ।
पर स्वाभिमान श्रृंगार मेरा,
पाना इसको अधिकार मेरा ।
भटकूँगी वन-वन संग तेरे,
सुख-दुख में साथ निभाऊँगी ।
किंतु जब तुम न्याय विमुख होगे,
मैं निश्चित आवाज उठाऊँगी ।
नारी हूँ धुरी हूँ श्रिष्टि की,
और शक्ति रूपिणी देवी हूँ ।
रावण के वध का वरद हस्त,
दुर्गा बनकर मैं देती हूँ ।
किंतु मैं नारी जन्म लेकर,
क्यों हर बार यातना पाती हूँ?
पुरुष प्रधान इस दुनिया में मैं,
अबला कहलायी जाती हूँ?
अस्तित्व का मेरे मान करो,
जीने का बराबर हक़ दे दो ।
जीवन के निर्णय लेने का,
मुझको समान अवसर दे दो ।