काल सी आंखे
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भयानक लाल सी आंखें डराती काल सी आंखे।
किसी वहशी दरिंदे की तरह घूरती विकट आंखे।
चाहती हूँ कि छिप जाऊं मैं किसी ताबूत के भीतर।
क्रूर साये की तरह हर घरी तकती हैं अधम आंखे।
हर समय पिलपिले कीड़े की तरह वह रेंगती मुझपर।
चाहती है मसल कर दम्भ से करे अट्टहास मुझपर।
घर के दीवार के पीछे भी जाकर छिप नहीं सकती ।
शूल बनकर दिवारों से भी मुझको नोचती आंखे ।
घर की दहलीज मुझको रोकती है घर में आने से।
श्यामपट्ट कक्षा में टंगी सहमती है पढ़ाने से ।
नित सडक पर भेडियों के बीच से होकर गुजरती हूँ ।
सरे बाजार में निर्वस्त्र करती सैकड़ों कटु आंखे ।