अरे रे ! मुझे कहाँ तक यह जन्म मरण करने है। इस
भवभ्रमण का कही अन्त है या नहीं ? इस प्रकार जब
तक चौरासी के अवतार का भय नहीं होता , तब तक
आत्मा की प्रीति नहीं होती। 'भय
बिना प्रीति नहीं', अर्थात भव-भ्रमण का भय हुए
बिना, आत्मा की प्रीति नहीं होती। सच्ची समझ
ही विश्राम है। अनन्त काल से संसार में परिभ्रमण
करते हुए कही विश्राम प्राप्त नहीं हुआ है। अब
सच्ची समझ करना ही आत्मा का विश्राम है। पुज्य
गुरुदेवश्री कानजीस्वामी समझाते हैं कि तुम्हारे यह करोडों और
अरबों रूपयेहैं, वह सब सिर्फ धूल है, हथेली पर जमा हुआ
मैल है।
श्रोता - भले ही आप धूल कहो या मैल कहो, परन्तु
उसकी कुर्सी तो सबसे आगे रहती है।
पूज्य गुरूदेव – वास्तव में तो उसकी कुर्सी नरक के
द्वार में सबसे आगे रहती है। अरे, यहाँ तो शुभ भाव में
बैठकर जो उसे अपना मानता है; वह तो नरक में बैठा है,
मिथ्यात्व में बैठा है