पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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प्रयोजन को प्रमुख रखो

एक व्यक्ति आम खाने के लिए बाग में गया । वहाँ माली से पूछने लगा - "यह बाग किसका है ?, इसमें कितने पेड़ हैं ?, कौन-कौनसी जाति के हैं ?, कब-कब फल आते हैं ?"

इसी बीच कुछ लोग आये, वे आम खरीद कर ले गये । तब उसने कहा, "कुछ आम मुझे भी चाहिए? "

माली ने कहा - "अब तो आम समाप्त हो गये और मुझे काम से जाना है । तुम फिर आना । और तब से इधर-उधर की बातें क्यों करते रहे ? बाग ही देखते रहे ।"

उस व्यक्ति को बिना आम लिए ही वापस जाना पड़ा । ठीक ही कहा है - *"आम खाना है तो पेड़ गिनने से क्या ?"*

*इसी प्रकार सामान्य जीव अप्रयोजनभूत विकल्पों में ही उलझते रहते हैं । मनुष्य पर्याय, सत्समागम आदि की दुर्लभता का ही विचार करते रहते हैं ; परन्तु तत्त्वनिर्णय, भेदविज्ञान, स्वानुभव व संयम आदि का उद्यम नहीं करते और पर्याय पूर्ण होने पर संसार सागर में ही गहरे डूब जाते हैं ।*

*अतः सर्वप्रथम प्रयोजनभूत तत्त्वों का निर्णय कर अपना हित कर लेना ही श्रेयस्कर है ।*

पुस्तक का नाम - लघु बोध कथाएँ ।
लेखक - ब्र. रवीन्द्र जी "आत्मन" ।