पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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जरा सोचो ! सच्चा मित्र कौन ?

एक आदमी के तीन मित्र थे । उनमें से पहले दो के प्रति उसे बहुत आदर था, अतः उनसे वह बहुत अधिक प्रेम करता था । तीसरे के प्रति उसने ध्यान नहीं दिया और न कभी उस तीसरे मित्र की चिन्ता की ।

एक बार उस आदमी पर बहुत कठिन प्रसंग आ पड़ा । उसे इस बात का निश्चय हो गया कि उसे न्यायालय में खड़ा होना पड़ेगा और उसका अनादर होगा । वह पहले अपने मित्र के पास गया और उससे अपनी सहायता करने तथा न्यायालय में चलने के लिए प्रार्थना की, लेकिन उस मित्र ने उसे साफ ठुकरा दिया । वह बोला, "न्यायालय की तो बात बहुत दूर रही, मैं तुम्हारे साथ एक कदम भी नहीं चलूँगा ।"

तब वह दूसरे मित्र के पास गया और उससे भी वही प्रार्थना की । दूसरा मित्र बोला, "मैं यह मानता हूँ कि तुम संकट में हो, किन्तु मैं तुम्हारे साथ केवल न्यायालय की सीमा तक जाऊँगा पर उसके भीतर जाना मेरे लिए सम्भव नहीं होगा । क्षमा करो ।" इस प्रकार इस मित्र से भी कोई लाभ नहीं हुआ ।

अन्त में वह उस तीसरे मित्र के पास भी गया, जिसकी ओर उसने आज तक कभी ध्यान नहीं दिया था । उस मित्र ने उसके साथ न्यायालय में चलना स्वीकार किया । इतना ही नहीं, अपितु उसने न्यायाधीश के सामने उसकी ओर से अत्यन्त प्रभावपूर्ण रूप से पैरवी की और उसे दोषमुक्त करवाया । तब उसे उस मित्र के प्रति उपेक्षा करने पर पश्चाताप हुआ ।

उस आदमी के ये तीन मित्र थे - सम्पत्ति (पहला मित्र), सम्बन्धी (दूसरा मित्र) एवं सत्धर्म (तीसरा मित्र) । मनुष्य जब मरणासन हो जाता है, तब सम्पत्ति एक कदम भी उसके साथ नहीं जा सकती । उसके सम्बन्धी लोग श्मशान तक उसका साथ देते हैं । उससे आगे वे उसके साथ नहीं जा सकते । परन्तु उसके द्वारा किया हुआ सद्धर्म अन्त तक उसका साथ देता है और न्यायासन के सामने उसकी पैरवी करके उसे दोषमुक्त कराता है, किन्तु मनुष्य जिस प्रकार सम्पत्ति तथा सम्बन्धियों की ओर ध्यान देता है, उस प्रकार सद्धर्म की ओर ध्यान नहीं देता । अतः हमें इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए और सच्चे मित्रस्वरूप सत्यधर्म करने में अपने मनुष्यभव का अमूल्य समय लगाना चाहिए ।

पुस्तक का नाम - जैनधर्म की कहानियाँ, भाग-15 ।
प्रकाशन - श्री कहान स्मृति प्रकाशन, सोनगढ़ ।