मन कुण्ड मे ,कभी भी न भरने वाले ईच्छाऔ की ,
ऐक ही कुंजी है ,ऐक ही चाबी है,ऊसे और और बंद करें ,
केवल आवश्कता की बात करे ।
मनुष्य की समस्या उसका मन है। और मन की समस्या, कितना ही उसे भरो, न भरना है। मन भर नहीं पाता है। क्या है इसके पीछे? कौन सा गणित है जो हम नहीं समझ पाते और जीवन भर रोते हैं और परेशान होते हैं? कौन सी कुंजी है जो इस जीवन की समस्या को सुलझाकी और हल कर देगी?
बिना इसे समझे, चाहे हम मंदिरों में प्रार्थनाएं करें, चाहे मस्जिदों में नमाज पढ़ें, चाहे आकाश की तरफ हाथ उठा कर परमात्मा से आराधना करें, कुछ भी न होगा, कुछ भी न होगा।
क्योंकि जो आदमी अभी अपने मन को ही सुलझाने में समर्थ नहीं हो सका, उसकी प्रार्थना का कोई भी मूल्य नहीं हो सकता है। और जो मनुष्य अभी अपने भीतर ही स्पष्ट नहीं हो सका है जीवन की समस्या के प्रति, वह जिन मंदिरों में जाएगा, उसके साथ ही और भी उपद्रव वहां पहुंच जाएंगे।
मंदिर से वह तो शांत होकर नहीं लौटेगा, लेकिन मंदिर की शांति को जरूर खंडित कर आएगा। भीतर जो उलझा हुआ है वह जो भी करेगा, कनफ्यूज माइंड जो भी करेगा, उससे जीवन में और कनफ्यूजन, और परेशानी, और उलझाव बढ़ता है।
हम एक पागल आदमी से सलाह लेने नहीं जाते, क्योंकि पागल जो भी सलाह देगा वह और भी उपद्रव की हो जाएगी। पागल जो सुलझाव उपस्थित करेगा वह और भी पागलपन का हो जाएगा।