एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि इस्लाम के साधक
मक्का में हज के लिए जाते हैं, क्या वह भी ध्यान
नहीं है?
वह भी ध्यान की एक प्रक्रिया है। लेकिन शायद
ठीक नहीं होगा कहना कि है, कहना होगा ठीक
कि थी, अब है नहीं। कभी थी। दुनिया में सारे
धर्मों का जन्म, ध्यान की प्रक्रिया के
बिना नहीं हुआ है। कोई धर्म दुनिया में जन्म नहीं ले
सकता ध्यान की गहरी प्रक्रिया के बिना। लेकिन
सब ध्यान की प्रक्रियाएं धीरे-धीरे रिचुअल
हो जाती हैं, क्रियाकांड हो जाती हैं। लोग
उनको औपचारिक ढंग से करने लगते हैं--फॉर्मल। अब
चूंकि एक आदमी मुसलमान है, इसलिए हज कर
आता है। किसी ध्यान के लिए नहीं,
किसी परमात्मा के लिए नहीं। क्योंकि अगर ध्यान
और परमात्मा का खयाल हो, तो मक्का तक जाने
की जरूरत नहीं है, वह तो इसी जमीन के टुकड़े पर
हो सकता है। मक्का तक जाने की जो जरूरत
पैदा होती है, वह मुसलमान होने से पैदा होती है,
वह ध्यान के लिए नहीं पैदा होती। काशी जाने
की जरूरत हिंदू होने से पैदा होती है, ध्यान के लिए
पैदा नहीं होती। गिरनार जाने की जरूरत जैन होने
से पैदा होती है, ध्यान के लिए नहीं होती।
अब यह बड़े मजे की बात है कि जैन अगर मक्का में रह
रहा होगा तो गिरनार आएगा। और मुसलमान अगर
जूनागढ़ में रह रहा होगा तो मक्का में जाएगा।
निपट पागलपन है। काशी का मुसलमान
मक्का जाएगा, मक्का का हिंदू काशी आएगा।
बिलकुल पागलपन है। अगर ध्यान का खयाल है
तो यह कहीं भी हो सकता है। इस पृथ्वी का कोई
भी कोना परमात्मा से वंचित नहीं है। मक्का में
भी हो सकता है, मदीना में भी हो सकता है, बंबई में
भी हो सकता है। और जिसे ध्यान
की प्रक्रिया का कोई पता नहीं है उसे मक्का में
भी नहीं होगा, काशी में भी नहीं होगा, कैलाश
पर भी नहीं होगा।
इसलिए असली सवाल प्रक्रिया को समझने का है।
हज की प्राथमिक प्रक्रिया ध्यान ही थी। समस्त
तीर्थों का जन्म ध्यान के ही आधार पर हुआ था,
समस्त धर्मों का भी। लेकिन फिर सब
खो जाता है। और पीछे जो लोग जन्म से धार्मिक
होते हैं, बाइ बर्थ, उनसे ज्यादा झूठे धार्मिक
आदमी दुनिया में नहीं होते। लेकिन हम सभी लोग
जन्म से धार्मिक होते हैं। और तो हमारा धार्मिक
होने का कोई आधार ही नहीं होता।
जन्म से कोई धार्मिक हो सकता है? जन्म से
किसी को शिक्षित बनाने लगें, उस दिन
पता चलेगा आपको--शिक्षित बाप
का बेटा शिक्षित हो जाए जन्म से और डाक्टर
का बेटा डाक्टर हो जाए जन्म से--तब
आपको पता चलेगा कि कितना खतरा दुनिया में
हो जाएगा।
लेकिन मुसलमान, हिंदू, ईसाई, धार्मिक जन्म से
हो रहे हैं। बाप भी जन्म से था, उनका बाप भी जन्म
से था। अगर पिछला बाप भी डाक्टर
रहा हो तो हो सकता है बाप के पास रहते-रहते
थोड़ा आदमी सीख ले। लेकिन किसी का बाप
चौदह सौ साल पहले मर चुका, किसी का पांच
हजार साल पहले, किसी का दस हजार साल पहले।
और जिसका बाप जितना पहले मर चुका, वह
सोचता है, उसके पास उतना ही कीमती धर्म है।
सारी धर्म की प्रक्रियाएं ध्यान से ही संबंधित हैं।
लेकिन ध्यान को ही सीधे समझ लेना उचित है
बजाय उन प्रक्रियाओं को समझने को .....
ओशो
ध्यान दर्शन - 4