(((((((( फर्ज की हिफाजत ))))))))
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बात उन दिनों की है, जब महान देशभक्त सरदार वल्लभ भाई पटेल वकालत कर रहे थे।
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उनके पास हत्या का एक पेचीदा मुकदमा आया। वकील की एक छोटी सी गलती से ही आरोपी को फांसी की सजा हो सकती थी।
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काफी सोच-विचार के बाद जब पटेल को पूरा विश्वास हो गया कि आरोपी बेकसूर है, तो उन्होंने मुकदमे की पैरवी करना स्वीकार कर लिया और आरोपी को बचाने के लिए रात- दिन एक कर दिया।
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एक दिन इसी संदर्भ में अदालत में महत्वपूर्ण बहस चल रही थी। इसी बहस पर फैसला टिका हुआ था। पटेल एकाग्रचित्त होकर बहस कर रहे थे।
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तभी अदालत में उनके नाम का एक तार आया। उन्होने तार पढ़ा। एक क्षण के लिए उनके चेहरे पर गहरे दुख का भाव उभरा पर दूसरे ही क्षण सहज भाव से उन्होंने वह तार अपनी जेब में रख लिया और बहस करने लगे।
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बहस समाप्त हुई और अदालत का समय भी समाप्त हो गया। पटेल के एक साथी ने पूछा, उस तार में क्या लिखा था ?
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उन्होने जवाब दिया कि उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई है। तार में वही सूचना दी गई थी।
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जिसने भी यह बात सुनी, उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
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एक दिन पटेल के एक करीबी मित्र ने साहस करके पूछ ही लिया, पत्नी की मृत्यु की खबर पाकर भी तुम किस तरह बहस करते रहे ?
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पटेल बोले, और मैं क्या करता ? वह तो इस दुनिया से चली ही गई थी, अगर बहस बीच में छोड़ता तो एक बेकसूर व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ जाता।
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उस समय मेरा फर्ज यही था कि अदालत न छोड़ूं और मैंने अपना फर्ज निभाया। ऐसे थे अपने सरदार पटेल।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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