मैं प्रेम करती हूं
इसलिए नहीं कि
मैं प्रेयसी हूँ प्रिय की
अपितु जिस ईश्वर ने
मुझे गढ़ा है,,,,
उसने दी है, मुझे
ये प्रवृत्ति प्रेम की,,
ताकि मुझमें एक
बेहतर #मैं बन सकूँ !!
मैं प्रेम करती हूं
इसलिए नहीं, कि
बांध रखा है किसी ने
ह्रदय को मेरे,,,,
अपितु मैं आदि हूं
सत्य को देखने की
और वहीं सुंदर है !!
नहीं सुनती मैं
किसी बेसुरे को
अपितु सुनती हूं उसके
मन का निश्छल संगीत !!
हा मैं प्रेम करती हूं
क्योंकि,,,,
जीवन के निर्माण में
मैं जान गयी हूं
किसी के घर को
मंदिर बनाना !!
सीख लिया है मैंने
सुख-दुख के तारों पर
मधुर धुन बजाना !!
मैं जान गयी हूं
मैं "मैं" ही हूं
और यहीं है
#मेरा_मुझसे
प्रेमबोध !!