#प्रतीक्षा
सुनो कान्हा,,,,,,,,,
नेह के दर्पण से, देह के तर्पण तक
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती रहूंगी !!
मैं खड़ी रहूँगी, उसी
अंतिम मोड़ पर
जहां से तुम मुड़
गये थे मथुरा को,,,,,
और छोड़ गये थे
एक गीत मधुर,,,,,,,
मैं अनवरत वहीं गीत
सुनती रहूँगी,,,,,
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती रहूँगी !!
मेरे कान्हा,,,,,
मुरली जो तुम्हारी
अधरों तक तुम्हारे
आती थी मेरे लिये
वियोग में तुम्हारे,,,
उसमें स्वर भरती रहूँगी
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती रहूँगी !!
लिख कर भेजा था
रिक्त सा पत्र ,,,,,,
जो मेरे नाम तुमने
उसे मेरे ईष्ट
तुम्हारे सहस्त्र नामों
से भरती रहूँगी,,,,
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती रहूँगी !!
प्रेम में क्रोध कहाँ
शेष रह जाता है ,,,,
जब तक वो बन न जाये
श्रद्धा सुमन,,,,,,
तब तक अश्रु से भीगे
पारिजात अर्पण करती रहूँगी ,,,,,
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती रहूँगी !!
नेह के दर्पण से, देह के तर्पण तक
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती रहूंगी !!
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