मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में खजुराहो ग्राम के समीप 6 किलोमीटर के परिसर का परास लिए ये मंदिर शिव जी के मध्यकालीन मंदिरों में से सबसे भव्य मंदिरों में एक है।
कहा जाता है कि गुफानुमा आकृति के कारण इसे कंदारिया महादेव मंदिर कहा गया।
सन 1019 में गजनी से एक बर्बर लुटेरा भारत की संपत्ति से प्रलोभित हो और दीन के विस्तार के लिए काफिरों की हत्या करने के उद्देश्य से पश्चिमोत्तर प्रान्तों को आक्रांत करते हुए जेजाकभुक्ति तक आ पहुँचा। उस समय जेजाकभुक्ति (वर्तमान महोबा, छतरपुर, पन्ना आदि जिले) पर चंदेलों की यशपताका लहरा रही थी। हूणों को पराजित करने वाले यशोवर्मन के कुल के महाराज विद्याधर जेजाकभुक्ति के सरंक्षक थे। भयंकर युद्ध हुआ जिसमें महमूद गजनवी को विवश होकर संधि करना पड़ा।
3 वर्ष पश्चात 1022 ईस्वी में वो बर्बर लुटेरा महमूद गजनवी पुनः जेजाकभुक्ति पर आक्रमण के लिए आया और इस बार भी उसे मुँह की खानी पड़ी। चन्देलों से पराजित हो उसने पुनः संधि को कर लिया।
महाराज विद्याधर ने इस विजय की स्मृति में कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण कराया। जिसके बाह्य भित्तियों पर मैथुनरत मूर्तियाँ हैं तो अंदर त्रिदेव की मूर्तियाँ।
कहा जाता है कि इस मंदिर को मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचाने के लिए खजुराहो ग्राम के वासियों ने ग्राम ही छोड़ दिया जिससे मुस्लिम आक्रमणकारियों की दृष्टि इन मंदिरों पर न पड़े।
अँग्रेजों ने स्थानीय लोगों की सहायता से इस मंदिर को ढूँढ निकाला। उसके पहले यहाँ मात्र नाथ सम्प्रदाय के योगी ही आते थे। वर्षों तक निर्जन रहने के कारण यह मंदिर जंगलों से आच्छादित हो गया था।
सुना है कि औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ना चाहता था किंतु किसी कारणवश नहीं तोड़ पाया। कल बहुत गूगल किया किन्तु इस विषय में कोई लेख नहीं मिला।
मंदिर में बलुआ पत्थर लगे हैं जिनकी चमक आज भी विस्मित करती है। पत्थरों को चमकाने के लिए इस पर चमड़े की भारी घिसाई की गई है।
महमूद गजनवी को पराजित करने वाले महाराज विद्याधर और उस जीत की स्मृति में बने इस मंदिर को कदाचित ही अधिक लोग जानते हों।
लालकिला और ताजमहल के बारे में कितना बताया जाता है किंतु खजुराहो के मंदिरों की नग्न मूर्तियों के अतिरिक्त उसके शिल्प पर कभी बात नहीं होती। समय हो तो कभी यहाँ घूमने के लिए जरूर जायें।