गंगा को साफ़ करने का इससे अच्छा तरीका ना होगा. उद्गम को ही समाप्त कर दो. ना रहेगा पानी ना होगी गंगा मैली.
ऐसा लगता हे की मानव ने प्रकृति से नष्ट होने का मन बना लिया हे. हाँ जी सही सुना हे, अरे भाई आदमी की हैसियत नहीं की प्रकृति को नष्ट कर सके. हां अगर प्रकृति ने रौद्र रूप दिखा दिया तो फिर ?
कल्पना कर लीजिये भाई इतना तो कर ही सकते हे अगर गंगा को ना बचा पाए तो.