किसान अब मूर्ख बनने को तैयार नहीं है। बरसों तक किया जा रहा शोषण आंदोलन को ही जन्म देता है। किसान को समझ में आए सारा खेल तो वह विरोध भी नहीं करे। एक सांसद साल भर में चार लाख की बिजली मुफ़्त फूँकने का अधिकारी होता है, लेकिन किसान का चार हजार का बिजली का बिल माफ करने के नाम पर आप टीवी चैनल देखते हुए बहस करते हैं। यह चेत जाने का समय है। कहिए कि आप साठ से अस्सी रुपये लीटर दूध और कम से कम साठ रुपये किलो गेंहू खरीदने के लिए तैयार हैं, कुछ कटौती अपने ऐश और आराम में कर लीजिएगा। नहीं तो कल जब अन्न ही नहीं उपजेगा तो फिर तो आप बहुराष्ट्रीय कंपनियों से उस दाम पर खरीदेंगे ही जिस दाम पर वे बेचना चाहेंगी।