एक चिड़िया चोंच में सूखा सा एक तिनका दबाये
शाख कोई खोजती है घोंसले के वास्ते
इस अटारी उस अटारी भागते दिन कट गये
मिल न पायी कोई डाली आशिया के वास्ते।
ये शहर है कंकरो का, इस जगह हरियाली नहीं
फूलदाने हैं यहाँ, पर आम की डाली नहीं
पेड़ सारे बड़गदो के, ऊँचे पुलों से कट गये
और डाली गुलहडों के चौड़े सडक पर मिट गये
ऊँची सी कोई झाड़ भी दिखती नहीं,
पंछी के घर के वास्ते।
बिज़ली की तारें हैं सहारा, पर आशियाना ये नहीं
ऊँची मीनारे हैं बहुत, लेकिन ठिकाना ये नहीं
कितने परिंदे मर मिटे इन बिजलियों के तार से
बिन आबोदाना मिट गये, पर पटक मीनार से
महफूज़ सी कोई जगह मिलती नहीं,
नन्हे खगों के वास्ते।
दिन की चमकती धूप और रातों की जगमग रौशनी
है धूल का अम्बार और धुएँ की बादल घनी
इन प्रकृति के लाड़लों के प्राण अब जोखिम में हैं
कुछ की विरासत मिट गयी कुछ की खतम होने को है
क्या ये धरा केवल बचेगी मानुषो के वास्ते?
बचपन के गौरेये की झुडमुट, मैने के जोड़े हैं कहाँ
दुनिया मशीनो से भरी, लेकिन वो कलरव अब कहाँ?
भोर में कोयल कि कुह-कुह, झीन्गुर के झन-झन रात में
बरसात में मेंढक की टर्र-टर्र, रातो में जुगनू हैं कहाँ?
बिन प्रकृति ये कौन सी दुनिया गढी है हमने
अपने वंशजो के वास्ते?
क्यों न मीनारो के चारों ओर सुंदर वृक्ष हो
कारखाने के धुएँ को सोखता वट वृक्ष हो
वन्य जीवों को बसाने के हेतु वन लगे
चहचाये फिर परिंदे घोंसले उनके सजे।
मिलकर प्रकृति में प्राण फूँके
इस धरा के वास्ते।