संजीव जैन's Album: Wall Photos

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इक बूँद हूँ मैं बादल में छिपी
जी करता है अमृत बन बरसूँ।
अधरों की सूखी प्यास बुझे
उम्मीद किसी की बन बरसूँ।

काले मेघो के अंतः में ,
मन उमड़-घुमड़ सा जाता है।
आशाओं का एक अंश बनूँ
मैं मौनसून बन कर बरसूँ।

काला हारी या थार मरू,
जलते-तपते रेगिस्तानो में
हरियाली की शीतल आस जगे
सखियों संग ऐसे मैं बरसूँ।

बेजान पड़ी निर्जन आँखे
आँसू भी जिसके सूख गये।
मुरझाये खेत के फसलों संग
कृषकों की खुशिया सूख गयीं।
उन पोषक हाथों की दुआ बनूँ
उम्मीद मेघ बन कर बरसूँ।

मन मोर मयूरा नाच उठे
सावन की घटा बन कर बरसूँ।
प्रेमी युगलो की यादो में
मैं प्रथम बूँद बन कर बरसूँ।

कल तक सागर की गोद में थी
लहरों संग खेला करती थी।
ऊँचे-ऊँचे चट्टानों को
उफना के धकेला करती थी।

लहडाती थी, ईठलाती थी
इतराती थी, गुर्राती थी
लेकिन खारे पानी के सिवा
पहचान भला क्या पाती थी?

एक दिन किरणों से आस जगी
बन कर के वाष्प बादल से मिली
अब इंतज़ार उस क्षण का है
जब अमृत बन कर मैं बरसूँ।

#रागिनीप्रीत