संजीव जैन's Album: Wall Photos

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कयी दिनो से पीठ में बहुत दर्द था
डाक्टर ने कहा
अब और
झुकना मत
अब और झुकने की
गुंजाइश नहीं
तुम्हारी रीढ की हड्डी में गैप आ गया है
सुनते ही उसे
हँसी और रोना
एक साथ आ गया..

ज़िंदगी में पहली बार
वह किसी के मुँह से
सुन रही थी
ये शब्द ...

बचपन से ही वह
घर के बड़े, बूढ़ों
माता-पिता
और समाज से
यही सुनती आई है,
झुकी रहना...

औरत के
झुके रहने से ही
बनी रहती है गृहस्थी..
बने रहते हैं संबंध
प्रेम..प्यार,
घर परिवार
वो
झुकती गई
भूल ही गई
उसकी कोई रीढ भी है..
और ये आज कोई
कह रहा है
झुकना मत..

वह परेशान सी सोच रही है
कि क्या सच में
लगातार झुकने से रीढ की हड्डी
अपनी जगह से
खिसक जाती हैं
और उनमें
खालीपन आ जाता है..

वह सोच रही है...
बचपन से आज तक
क्या क्या खिसक गया
उसके जीवन से
बिना उसके जाने समझे...

उसका खिलंदड़ापन,
अल्हड़पन
उसके सपने
उसका मन
उसकी चाहत..
इच्छा,अनिच्छा
सच
कितना कुछ खिसक गया
जीवन से..

क्या वाकई में औरत की
रीढ की हड्डी बनाई है भगवान ने
समझ नहीं आ रहा.....