नब्बे के दशक में जब रामजन्म भूमि के सर्वश्रेष्ठ कवरेज के बाद आप देशवासियों के दिल मे जगह बनाने में सफल रहे थे। उस वक्त आपकी छवि प्रखर राष्ट्रवादी मीडिया की हुआ करती थी। सफलता की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते वह प्रखरता कहीं खो गई। इतनी लंबी यात्रा के बाद पाठक महसूस करने लगा है कि दैनिक भास्कर एक सेकुलर अखबार बन चुका है। इसके हर पन्ने से तुष्टिकरण की दुर्गंध आने लगी है। आपके कार्टून और फिल्मी कॉलम तक इसी बदबू से गंधाते रहते हैं। जब पुलवामा में सैनिक शहीद हुए और दूसरे दिन आपने मुख्य पृष्ठ पर विज्ञापन लगाया। बाकी अखबारों ने पहले पन्ने पर सैनिकों की वीरगति को जगह दी। आपने तो सैनिकों के बलिदान को भी बेच डाला। और अब माफी मांगने के बजाय आप ऐसे कार्टून लगाकर देशवासियों को अपमानित करने पर उतर आए हैं।
आप हैं क्या? आपका वजूद राष्ट्रवाद से पैदा हुआ था। आपने शिखर पर पहुंचकर उसे ही भुला दिया। मैं भारत का नागरिक आपके इस कृत्य की घोर आलोचना करता हूँ। आपने समझ लिया कि मीडिया है तो कुछ भी करने को स्वतंत्र है।