अकल और शकल दोनो की देवियो ने अपनी अपनी बाल्टियाँ एक साथ उठाई ,अकल की देवी ने अकल बाँटने की शुरूवात की कन्याकुमारी से और शक्ल की देवी ने शक्ल बाँटना शुरू किया क़श्मीर से !
इतना बड़ा देश ,इतने सारे लोग ! बड़ा काम था ये ,हवाई जहाज़ और बुलेट ट्रैन तब थी नही ! बस और बैलगाड़ी की इजाद भी नहीं हो सकी थी ! ऐसे में पैदल चलती ये दोनो थकी हारी देवियाँ जब तक भारत के बीच मे बसे हम हिंदी बेल्ट वाले लोगो तक पहुँची ,दोनो की बाल्टियाँ खाली हो चुकी थी !
तो भाईयो यदि हम या हमारे पुरखे ,फ़ैशन,खूबसूरती ,आर्टस् ,मैथेमैटिक्स,साईंस,या किसी और इलाक़े मे कोई बडा तीर नही मार सके हैं ,कोई नोबेल टाईप का पुरूस्कार पल्ले पड़ा नहीं हमारे ,हमें और हमारी बातो को कोई सीरियसली नहीं लेता ,बाकी दुनिया हमे भीड कहती है ,भाड में भेज देने लायक मानती है तो इसे लेकर दुखी ना हों ,ना कोई हमे तानें दें ! अब यदि ये अदूरदर्शी,नाज़ुक सी देवियाँ बडी बाल्टियाँ नही उठा सकती थी तो इसमे हमारी कोई गलती नही है !