#बिना #sentimental हुए सोचना!!!
लोगों के पलायन के जो दृश्य लगातार सामने आ रहे हैं उसे देख कर द्रवित होना स्वाभाविक है। इस दृश्य को देखते ही कई सवाल दागे जाते हैं कि- #देखो_सरकार_कितनी_निष्ठुर_है,,, गरीब की किसी को चिंता नहीं है,,, लोग भूख प्यास से मर रहे हैं किसी का ध्यान नहीं है,,,, #हवाई_जहाज से विदेशों में बैठे लोगों को लाया जा सकता है तो इन गरीबों को घर तक क्यों नहीं पहुंचाया जा सकता?? आदि आदि कई सवाल होते हैं,,
अब मैं जो बात लिखूंगा वह आपको असहज कर सकती है, बुरी लग सकती है, मुझे अंधभक्त की उपाधि दिला सकती है और साथ ही मेरी संवेदनशीलता पर भी सैकड़ों प्रश्न खड़े कर सकती है, फिर भी अपनी बात लिख रहा हूं।।
आखिर इन सवालों में सिर्फ सरकार को निशाना बनाना कहां तक उचित है क्या इस देश के लोगों की देश के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है,,,
जो #मजदूर ट्रकों में 3000 से 8000 रुपए और इससे अधिक भी किराया देकर जा रहे हैं।
इतने पैसों के होते हुए वो भूख प्यास से परेशान कैसे हो सकते हैं?
सरकार ने तो कहा था कि जो जहां है वहीं रहे। तीन महीने का राशन भी दिया है, प्रत्येक शहर में स्थानीय प्रशासन और जो समाजसेवियों की भरमार है वो किसी को भूखा नहीं सोने दे रहे हैं तो यह तो साफ है कि इन्हें भूख के कारण पलायन करने विवश नहीं होना पड़ा। कई वर्षों से काम कर रहे अनेक मजदूर तो अपने घर भी बसा चुके थे।
लेकिन बीमारी के भय से और भविष्य की अनिश्चितता को देखकर चलने वाली अफवाहों ने पलायन की भेड़ चाल को विभीषिका में बदल दिया।
#अब_सोचिए कि ये गांव आकर आखिर कर क्या लेंगे? क्योंकि गांव में काम न होने से ही तो अन्य जिलों या प्रदेशों में गए थे। और क्या इनके गांव में बीमारी और संक्रमण का खतरा नहीं है? जब पूरी दुनिया इस बीमारी से अछूती नहीं है, भारत अछूता नहीं है, जो हाल अभी ये लोग जहां थे वहां का है वही हाल गांव का है, तो फिर वापस लौटने का मकसद क्या ? सिवाए भय और अज्ञानता के!!
अब यह जरूर हो गया है कि अभी तक संक्रमण से मुक्त रहे गांवों में भी #संक्रमण_का_खतरा इन्होंने पैदा कर दिया है।
लोग इधर उधर न जाएं, संक्रमण न फैले इसलिए सरकार ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट बन्द किए थे। #लॉकडाउन_का_भी उद्देश्य यही है।
सरकार लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था कर रही है। 10 मई तक ऐसे 5 लाख मजदूरों को सरकार ने अपने खर्चे पर गंतव्य तक पहुंचाया भी और इस तारीख तक सिर्फ चार हजार व्यक्तियों को ही विदेशों से विमान से स्वदेश (भारत) लेकर आए। व उनसे किराया भी लिया हे।संक्रमण न फैले इसलिए इन सभी को क्वॉरेंटाइन कराया गया। सरकार के यह प्रयास अभी भी जारी है लेकिन फिर भी मजदूर मानने तैयार नहीं है।
यहां यह भी समझ लें कि विदेशों से आने वालों को क्वॉरेंटाइन करने के एवज में शुल्क लिया गया है। जबकि गरीबों से परिवहन का किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया गया फिर चाहे किराया #केंद्र_सरकार ने दिया हो, प्रदेश सरकार ने दिया हो, या कथित तौर पर हल्ला मचाने वाली #कांग्रेस ने दिया हो,,,
लेकिन इन गरीब मजदूरों को सरकार की कोई बात नहीं मानना, इसलिए दस और पंद्रह गुना किराया देकर लोडिंग वाहनों में ठसाठस भरकर आ रहे हैं। अब सरकार क्या करे ?? विपक्ष तो सरकार के सिस्टम को फेल करने पर आमादा है ही उसे किसी के जीवन मृत्यु से कोई लेना देना नहीं है, उसका मकसद त्रासदी में भी राजनीति के सुनहरे अवसर तलाशना है।।
यदि सरकार इस पलायन को रोके तो कहा जाएगा कि मजदूरों की, गरीबों की सुनवाई नहीं हो रही। यानि जिन्हें सरकारों कोसना है वो हर हाल में सरकार को कोसेंगे।
इस भीड़ को देखकर सामान्य बुद्धि का आदमी भावुक है।
भावुक और भड़भडिया लोग भी #शाब्दिक_कोहराम मचाने में लगे हैं।।
जिन्हें सन 1947 के विभाजन के समय #हिंदु_मुस्लिम दंगों की वास्तविक त्रासदी नहीं पता कि उस समय 10 लाख हिंदू मारे गए थे और 75 हजार माता बहनों को अगवा कर लिया गया था वो भी कह रहे हैं कि सन 47 से बुरी हालत है।।
ठीक है भाई तर्क के लिए सारी बात मान ली,, लेकिन इसके लिए #जिम्मेदार_कौन_है???
#कड़वी_बात_यह है कि गरीब तो अभी जहां था वहां भी गरीब था अब जहां जा रहा है वहां भी गरीब रहेगा।
आज देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी यह है कि वह किसी भी स्थिति में कोरोना को फैलने से रोके फिर वह चाहे गरीब हो या अमीर जो कोरोना फैलाने की स्थिति निर्मित करेगा वह कहीं ना कहीं गलती ही कर रहा है।
आज सभी को सैनिक जैसी सोच रखने की जरूरत है।
#शायद आज मेरी यह बात #भावुक_मन से समझ में ना आए लेकिन एक दिन इसे समझना ही होगा।
#अब_इस_तरह_सोचें
यदि #सैनिक भी अपना घर, अपना गांव, अपना परिवार, अपना भविष्य, और सिर्फ अपने जीवन के बारे में सोचने लगेगा तो देश का क्या होगा???
सरकार के प्रतिबंधों के बाद भी जत्थे के जत्थे जाते देखकर यदि नाको पर खड़े #पुलिस के जवान भी सोचने लगें कि जब लोग मानते ही नहीं तो हम यहां क्यों खड़े रहें, तब क्या होगा??
संक्रमण छुपाकर या संक्रमण फैला कर इधर उधर जा रहे लोगों को देखकर #डॉक्टर कह दें कि जब इन्हें मरना ही है ये नहीं सुधर रहे तो हम जान जोखिम में डालकर इलाज क्यों करें, तब क्या होगा??
यदि #सभी_लोग केवल खुद के बारे में सोचने लगे और देश के सिस्टम को बिगाड़ने पर उतारू हो जाएं तो इस #देश_को_सरकार_तो_ठीक_है_भगवान_भी_नहीं_बचा_सकते।।
(#नोट - मेरे इस लेख से सहमत होना जरूरी नहीं है, लेकिन उम्मीद है कि इसे पूरा पढ़ने पर आप भावुकता को त्याग कर, सैनिक मन से विचार अवश्य करेंगे...
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