कांग्रेस नेता गुलजारीलाल नंदा ऐसे एकमात्र व्यक्ति थे, जो दो बार देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन दोनों ही बार कार्यवाहक। देश के दूसरे प्रधानमंत्री नंदा सादगीपसंद, सत्यनिष्ठ, ईमानदार व गांधीवादी नेता थे। उन्होंने कुछ किताबों का लेखन भी किया था।
प्रारंभिक जीवन : इनका जन्म पाकिस्तान के सियालकोट (अब पाकिस्तानी पंजाब) में 4 जुलाई 1898 को हुआ था। इनके पिता का नाम बुलाकीराम नंदा तथा माता का नाम ईश्वरदेवी नंदा था। नंदा ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मजदूर समस्या पर रिसर्च स्कॉलर के रूप में काम किया। 1921 में वे नेशनल कॉलेज मुंबई में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे।
राजनीतिक जीवन : 1921 में गुलजारीलालजी नंदा ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान 1932 में और भारत छोड़ो आंदोलन के समय 1942-1944 में इन्होंने जेल यात्रा भी की थी। वे मुंबई की कांग्रेस की ओर से विधानसभा में 1937 से 1939 तक और 1947 से 1950 तक विधायक रहे। 1947 में इंटक की स्थापना हुई और इसका श्रेय नंदाजी को जाता है। भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर भी ये 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में रहे। वे केंद्र में गृहमंत्री और श्रम व रोजगार मंत्री भी रहे।
दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने : नेहरूजी के निधन के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में इनका प्रथम कार्यकाल 27 मई 1964 से 9 जून 1964 व लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा। ये अत्यंत ही अल्प समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे। नंदा गांधीवादी विचारधारा के पोषक रहे और लोकतांत्रिक मूल्यों में उनकी गहरी आस्था थी। वे धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवादी समाज की कल्पना करते थे। आप आजीवन गरीबों की सहायता के लिए मौजूद रहे।
पुरस्कार और सम्मान : 1997 में गुलजारीलाल नंदा को देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारतरत्न' और दूसरा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान 'पद्मविभूषण' प्रदान किया गया था।
विशेष : नंदाजी गांधीवादी, लोकतांत्रिक मूल्यों के हामी व एक राजनेता होने के साथ ही एक लेखक भी थे। लेखक के रूप में आपने सम ऑस्पेक्ट्स ऑफ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फाइव ईयर प्लान, गुरु तेगबहादुर : संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाइल्स, फॉर ए मौरल रिवोल्यूशन तथा सम बेसिक कंसीडरेशन आदि इन पुस्तकों की रचना की है।