संजीव जैन's Album: Wall Photos

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हमें गर्व है अपने सनातन धर्म और संस्कृति पर

हमारे शास्त्र हमारा विज्ञान

आजकल की पीढ़ी अपने शास्त्रों और वेदों की योग्यता और सार्थकता पर ऐसे उंगली उठाती है जैसे कोई अनपढ़ मूर्ख ISRO के काम पर उंगली उठाता है। वैसे तो हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए अद्भुत ज्ञान और विज्ञान छोड़ा है लेकिन हम उस अपनाने में कंजूसी करते हैं। उनमें से एक चीज वर्तमान समय में काफी प्रसांगिक है जिसके संदर्भ में मैं बात करूंगा।

पहले जब किसी की मृत्यु होती थी तब भी 13 दिन तक उस घर में कोई प्रवेश नहीं करता था। यही आइसोलेशन पीरियड (Isolation period) था। क्योंकि मृत्यु या तो किसी बीमारी से होती है या वृद्धावस्था के कारण जिसमें शरीर तमाम रोगों का घर होता है। यह रोग हर जगह न फैले इसलिए 14 दिन का क्वारांटाइन पीरियड ( quarantine period ) बनाया गया। जो शव को अग्नि देता था उसको घर वाले तक नहीं छू सकते थे 13 दिन तक। उसका खाना पीना, भोजन, बिस्तर, कपड़े सब अलग कर दिए जाते थे। तेरहवें दिन शुद्धिकरण के पश्चात, सिर के बाल हटवाकर ही पूरा परिवार शुद्ध होता था ।

तब भी आप बहुत हँसे थे। आपने मूर्ख और अनपढ़ भारतीय कहकर हमारा मजाक बनाया था। जब किसी रजस्वला स्त्री को 4 दिन एकांत में रखा जाता है ताकि वह भी बीमारियों से बची रहें और आप भी बचे रहें तब भी आपने पानी और ग्लूकोज पी पी कर गालियाँ दी। जब किसी के शव यात्रा से लोग आते हैं घर में प्रवेश नहीं मिलता है और बाहर ही हाथ पैर धोकर स्नान करके, कपड़े वहीं निकालकर घर में आया जाता है, इसका भी खूब मजाक उड़ाया आपने। आज भी गांवों में एक परंपरा है कि बाहर से कोई भी आता है तो उसके पैर धुलवायें जाते हैं। जब कोई भी बहू लड़की या कोई भी दूर से आता है तो वह तब तक प्रवेश नहीं पाता जब तक घर की बड़ी बूढ़ी लोटे में जल लेकर, हल्दी डालकर उस पर छिड़काव करके वही जल बहाती नहीं हों, तब तक। खूब मजाक बनाया था न।
आज जब आपको किसी को छूने से मना किया जा रहा है तो आप इसे ही विज्ञान बोलकर अपना रहे हैं। Quarantine किया जा रहा है तो आप खुश होकर इसको अपना रहे हैं। पर शास्त्रों के उन्हीं वचनों को तो ब्राह्मणवाद/मनुवाद कहकर आपने गरियाया था और अपमानित किया था। हां इस ज्ञान की महत्ता को कुछ लोगों ने गलत तरीके से पेश किया और कुछ लोगों ने इसका गलत तरीके से इस्तेमाल किया जिसका परिणाम आज छुआछूत के रूप में हमारे सामने हैं हमारा समाज अलग अलग हो कर इसका विष भुगत रहा है। आप उन लोगों को दोष दे सकते हैं जिन्होंने इसका गलत इस्तेमाल की लेकिन उस ज्ञान की सार्थकता को नहीं। यह उसी का परिणाम है कि आज पूरा विश्व इससे जूझ रहा है। याद करिये पहले जब आप बाहर निकलते थे तो आप की माँ आपको जेब में कपूर या हल्दी की गाँठ इत्यादि देती थी रखने को। यह सब कीटाणु रोधी होते हैं। शरीर पर कपूर पानी का लेप करते थे ताकि सुगन्धित भी रहें और रोगाणुओं से भी बचे रहें। विज्ञान भी इंसान चीजों की सत्यता को प्रमाणित कर चुका है।

लेकिन आपने सब भुला दिया और शास्रों की गाली देकर दरकिनार करके इंग्लिश में लिखी हुई प्रेम कहानी और काल्पनिक कहानियों को सबसे ऊपर जगह दे दी। पिछले ५०० सालों से पश्चिम संस्कृति भारतीय संस्कृति से ज्ञान की नकल करके और उससे चीजें उठा कर अपने तरीके से पेश कर रही और आप उसे "wow" कहकर अपना रहे है।