अपने से बड़ों का अभिवादन करने के लिए चरण छूने की परंपरा सदियों से रही है. सनातन धर्म में अपने से बड़े के आदर के लिए चरण स्पर्श उत्तम माना गया है. आशीर्वाद लेने के लिए पैर छूने का वैज्ञानिक कारण है। दरअसल, हमारे शरीर में ओपन एनर्जी के तीन सेंटर्स हैं, माथा, हाथ और पैर। पैरों में ओपन नाडी होती है, जहां से ऊर्जा निकती है। आशीर्वाद लेते समय हम अपने हाथ से सामने वाले के पैर छूते हैं। यानी हमारी एनर्जी के एक सेंटर का दूसरे की एनर्जी के सेंटर से संपर्क हो रहा है।
इसके बदले में सामने वाला हमारे माथे पर अपने हाथ रखता है। इस तरह से एक एनर्जी सक्रिट पूरा होता है और सही मायनों में पैर छूने वाले की जिंदगी में सकारात्मक ऊर्जा आती है। प्रणाम करने का एक फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है. इन्हीं कारणों से बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम और संस्कार का रूप दे दिया गया है.
जो लोग अपने माता-पिता या उम्र में बड़े लोगों को सम्मान नहीं करते हैं, उनके पैर नहीं छूते हैं, उनमें साकारात्मक ऊर्जा की कमी होती है। इसका बड़ा खामियाजा उन्हें अपनी जिंदगी में भुगतना पड़ता है।
लोगों को शिक्षा दी जाती है कि वे रोज कम-से-कम एक बार अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करें। इसके पीछे एक तर्क यह भी है कि भगवान ने हमें इस दुनिया में हमारे माता-पिता के माध्यम से भेजा है। इसलिए हमें जो कोई दिव्य शक्ति हासिल होना है, तो वो माता-पिता के जरिए ही होगी और चरण स्पर्श करना इसका एक तरीका है।