मां की गर्भावस्था पर सोचें तो क्या विचार आयेगा ?
हम यदि हाथ मे कोई वस्तु लीये होते हैं, उदाहरण स्वरूप कोई किताब, कोई पेन या ऐसी ही हल्की वस्तु। तो कुछ देर तो कोई दिक्कत, कोई कठिनाई नहीं होती।
परंतु कुछ घंटों तक पकड़ना हो तो? कुछ दिन तक ? 10 दिन, 20 दिन? क्या हम पकड़ पायेंगे?
वज़न में अधिक न भी हो तो, जैसे पानी का सिर्फ एक ग्लास, कितनी देर हाथ मे उठाये रखेंगे? वो वजन भी कुछ देर में नहीं उठाया जाता।
इस दुनिया मे एक मां ही ऐसी व्यक्ति है जो नौ नौ महीने तक बालक को अपने पेट मे रखती है और वो भी पूर्णतया खुशी के साथ।
कभी ये सोचती या कहती नहीं के ये क्यों कर रही है या नहीं कर सकती या नहीं करेगी।
हम सब को क्या ये ज्ञात है कि उन नौ महीनों तक गर्भावस्था में कितना संभलना पड़ता है?
हर वस्तु का कितना ध्यान रखना पड़ता है और कितना त्याग करना पड़ता है?
चलते फिरते, उठते बैठते, कोई भी कार्य करते, हमेशा सतर्क रहना होता है।
घूमने फिरने की मर्यादा, खाने पीने में रोक, अपने मौज शोख पर भी कंट्रोल। अरे....स्वास्थ्य बिगड़ा, बुखार सर्दी खांसी में भी दवाई नहीं ली जा सकती। उसमे भी ध्यान रखना।
मां के अनंत उपकारों में से यह एक उपकार ऐसा है, जब नन्ही सी जान को सारी दुनिया की दृष्टि से दूर, सब संकट से दूर, सेफ एंड साउंड, अपने पेट में सुरक्षित रखती है, ताकि हम इस पृथ्वी पर सुख पूर्वक अवतरित हो सके, यह एक उपकार मां रूपी तत्व के इलावा और किसी के बस की बात नहीं।