संजीव जैन's Album: Wall Photos

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#नागरिक_कर्तव्य

दो तीन दिन पहले की तीन बातें बताता हूँ.. सुबह उठा तो सामने वाले की छत पर लगी टंकी पानी भर जाने की वजह से बह रही थी.. यह उनका रोज का काम है, दिन में दो बार ऐसे ही उनकी टंकी बहती है, कई बार तो घंटा भर से ऊपर भी। पूरे भारत में लाखों टंकियां यूँ ही घंटों बहती हैं जहां पानी की उपलब्धता है.. आपने भी अपने आसपास देखी होंगी।

फिर बस से गोरखपुर के लिये निकला तो पड़ोस की सीट पर दो एजुकेटेड लड़के बैठे बिजनेस की बातें करते हुए संतरे खा रहे थे और कचरा वहीं बस में उगल रहे थे। आपने बस या ट्रेन में देखा होगा, खुद भी किया होगा.. मूंगफली खा कर छिलके वहीं फेंकना, या दूसरी चीजें खा कर कचरा वहीं डालना एक आम सी बात है।

फिर गोरखपुर पंहुचा तो अपने इलाके कजियारे में जाम में फंसा, क्योंकि एक नर्सिंग होम के सामने आड़ी टेढ़ी खड़ी मोटर साइकिलों की वजह से लोग फंस रहे थे। पतली सी सड़क पे भी लोग गाड़ी ऐसे खड़ी करते हैं कि रास्ता आधा भी न बचे। आपने भी देखा होगा, आपने भी किया होगा। सड़कों पर आड़ी टेढ़ी गाड़ियाँ खड़ी करके चल देना या लंबे वक्त के लिये पार्क कर देना हम भारतीयों का आम रिवाज है।

हम सपने देखते हैं अमेरिका लंदन जैसे होने के.. प्रधानमंत्री के बनारस को क्योटो बना देने के वादे का समर्थन भी करते हैं और मजाक भी उड़ाते हैं.. लेकिन क्या कभी हम नागरिक अधिकारों और नागरिक कर्तव्यों के बीच का फर्क भी समझते हैं। हमारी कमी यह है कि अपने अधिकारों की तो हमें खूब पड़ी रहती है लेकिन अपना कर्तव्य निभाना हम रत्ती भर नहीं जानते।

अमेरिका योरप के देश अगर साफ सुथरे और बढ़िया ढंग से संचालित और सुव्यवस्थित हैं तो इसलिये कि वहां के लोगों को अपने नागरिक कर्तव्यों का बोध है और वे उसे निभाते भी हैं। यहां तो इनवेस्टर्स समिट के चक्कर में साफ सुथरे किये गये और रंगे पुते लखनऊ को महीना भर में ही थूक थूक के लाल कर दिया गया।

प्रधानमंत्री की राजनीति का तरीका और उनकी नीतियों से मैं इत्तेफाक नहीं रखता लेकिन स्वच्छता अभियान और शौचालयों के लिये की गयी उनकी कोशिश मेरी नजर में उनकी उपलब्धि है.. कम से कम लोगों ने इन चीजों के बारे में बात तो शुरू की।

अगर यह अभियान इच्छित रिजल्ट नहीं दे सके या सफल नहीं हो सके तो जिम्मेदार मोदी नहीं हम आप हैं। आप भले उनका मजाक उड़ा लीजिये और जिम्मेदार प्रशासनिक बाॅडी को कोस लीजिये, लेकिन उस व्यवस्था में मौजूद लोग हमारे आपके बीच से ही होते हैं।

कोई प्रधानमंत्री, मंत्री, नेता या सरकारी अफसर आपके घर झाड़ू लगाने, आपके फेके कचरे को उठाने, आपके थूके को पोंछने या आपके बहते नल को बंद करने, आपकी आड़ी तिरछी खड़ी गाड़ियों को सही खड़ा करने नहीं आयेगा। जरूरत आपको समझने की है कि कचरा कहां फेंके, गाड़ी कहां कैसे खड़ी करें, पानी हमारे और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिये कितना कीमती है।

देश समाज, सरकारों से नहीं बनता, हमसे बनता है और वह वैसा ही होता है जैसे हम होते हैं। नागरिक अधिकार संविधान प्रदत्त जरूर हैं लेकिन वही संविधान आपसे नागरिक कर्तव्यों की भी आशा करता है.. जिसकी तरफ आप कभी देखना भी नहीं चाहते।

हालाँकि जो हम भारतीयों की मानसिकता है, उसमें बसों ट्रेनों में कचरा करने वालों, नाले नालियों में कचरा बुहारने वालों, सरकारी इमारतों, डिवाइडरों को थूकदान बनाने वालों, फुटपाथों को अपनी दुकानों, गाड़ियों के पीछे निगल लेने वालों, सड़कों को अपनी बपौती मान के गाड़ियाँ टिकाने वालों, ट्रैफिक नियम की धज्जियां उड़ाने वालों और पानी उपलब्ध है तो उसका अंधाधुँध दुरुपयोग करने वालों से उम्मीद करनी बेकार है कि वे अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति कभी सचेत होंगे.. बस सपने देख लें अमेरिका, योरप, गल्फ जैसे होने के ।
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