संजीव जैन's Album: Wall Photos

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#एक__आपबीती

जुमे की नमाज़ पढ़ने जाने के लिए मैं जल्दबाज़ी में अपने दफ़्तर से बाहर आया। मगर ऑटो मिलते ही याद आया कि मैं अपना पर्स ऑफिस में ही भूल गया हूं। मैंने ऑटोवाले से गुज़ारिश की कि वह मुझे मस्जिद तक पहुंचा दें। फिर वहीं 15-20 मिनट इंतज़ार करें और नमाज़ पढ़ने के बाद मुझे वापस ऑफिस छोड़ दें। इसकी एवज़ में मैंने उन्हें तय किराए से ज़्यादा रुपए देने का वादा भी किया।

मगर इसके जवाब में ऑटोवाले ने कहा, ‘आप भगवान के काम के लिए जा रहे हैं…आप टेंशन मत लें…मैं छोड़ देता हूं आपको…लेकिन मैं वेट नहीं कर पाउंगा…मुझे आगे जाना होगा।’
शुक्लाजी को शुक्रिया कहकर मैं उनके ऑटो में बैठ गया वरना मेरी नमाज़ छूट जाती। मगर मस्जिद के बाहर उतारने के बाद उन्होंने जो किया, मुझे उसकी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी। उन्होंने अपनी जेब से चंद रुपए निकालकर मुझे थमा दिया ताकि नमाज़ पढ़ने के बाद मैं अपने दफ़्तर पहुंच सकूं। चूंकि वह मस्जिद के बाहर इंतज़ार नहीं कर सकते थे तो भी वह यह सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि नमाज़ के बाद मैं बिना किसी समस्या के अपने दफ़्तर पहुंच जाऊं। वो मुझसे बड़ी ईमानदारी से कह रहे थे कि वहां रुक नहीं पाने का बुरा ना मानें।

मैं उन्हें शुक्रिया से ज़्यादा कुछ नहीं कह पाया।

ये हैं हमारे शुक्लाजी….घिसी-पिटी सोच पर प्रहार करने वाली एक शख़्सियत…एक ऑटोवाले और गणपति भक्त जिन्होंने अपने माथे पर लंबा तिलक लगा रखा है और जो एक सीमा से बाहर जाकर दूसरे मज़हब के शख़्स की मदद सिर्फ इसलिए कर रहे हैं ताकि वह अपनी इबादत ढंग से कर पाएं।

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यह बहुत बड़ा सबक है कट्टरपंथियों के लिये और धर्म को हर झगड़े की जड़ बताने वालों के लिये भी। हम अपने मजहब को पूरी मजबूती के साथ मानें और दूसरे के मजहब का उसी मजबूती के साथ सम्मान करें, बस दुनिया फिर बहुत खूबसूरत है।