निस्संदेह हमारा देश भारत कई मायनों में सौभाग्यशाली है कि जब जिस क्षेत्र में प्रेरणा की आवश्यकता पड़ती है तो कोई न कोई महापुरुष लाठी लेकर राह दिखाता मिलता है. दीप जलते रहते हैं, रौशनी की उम्मीद बनी रहती है और यही उम्मीद हमें हर समस्या से पार निकलना भी सिखलाती है. महात्मा गाँधी का जीवन न केवल भारतवासियों के लिए वरन तमाम वैश्विक नागरिकों के लिए प्रेरणा का श्रोत रहा है और उनके तमाम योगदानों में 'स्वच्छ रहने' का मन्त्र वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्वोपरि माना जा सकता है. यूं तो आलोचना करने वाले किसकी आलोचना नहीं करते हैं, किन्तु जो व्यक्ति यह कहने का साहस करे कि 'उसका जीवन ही उसका सन्देश है', तो फिर उसकी महानता में किसी प्रकार का शक-ओ-सुबहा नहीं होना चाहिए. सफाई और स्वच्छता के सन्दर्भ में ऐसे कई दृष्टान्त इस महान नेता के जीवन में ढूंढने पर मिल जायेंगे, जिनसे हम आज भी प्रेरणा ले सकते हैं. निस्संदेह गांधी जी स्वच्छता के सबसे बड़े पैरोकारों में से थे. उन्होंने एक बार सफाई के सन्दर्भ में कहा था कि ‘जिस नगर में साफ संडास नहीं हों और सड़कें तथा गलियां चौबीसों घंटे साफ नहीं रहती हों, वहां की नगरपालिका इस काबिल नहीं है कि उसे चलने दिया जाए'. साफ़ है कि सफाई और स्वच्छता का इस महात्मा के जीवन में क्या अभिप्राय था. महात्मा गांधी रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने आश्रम की सफाई किया करते थे. वर्धा आश्रम में तो उन्होंने अपना शौचालय स्वयं बनाया था और इसे प्रतिदिन वह खुद ही साफ भी करते थे. प्रसंगवश, एक बार एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी से पूछा था कि, यदि आपको एक दिन के लिए भारत का बड़ा लाट साहब (वायसराय) बना दिया जाए, तो आप क्या करेंगे. गांधीजी ने तत्काल कहा था कि, राजभवन के पास जो गंदी बस्ती है मैं उसे साफ करूंगा.