शिक्षक : समाज के शिल्पकार
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान!
सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान !!
सबसे पहले शिक्षक दिवस पर मेरे गुरु मेरे बाबा (पिता श्री एकनाथ राव खड़से जी) को प्रणाम जिन्होंने मुझे मानवता , सादगी और शिक्षा का पाठ पढ़ाया है. मेरा उन सभी गुरुओ को भी आदर भरा प्रणाम जिन्होंने मुझे यहाँ तक पहुंचने में मदद की.
आज बड़ा ही खास दिन है। आज उन शिल्पकारों का दिन है जिन्होंने हमें सही मायने में मनुष्य बनाया। काया से भले ही हम मनुष्य होते हैं, लेकिन हममें मनुष्यत्व के गुणों का संचार तो शिक्षक रूपी शिल्पकार ही करता है। वैसे तो माँ सबसे बड़ी गुरु होती है, वही जीवन की मूल शिक्षा देती है, उसी के बनाये गये आधार पर जीवन का दारोमदार होता है। पर, इसी कड़ी को शिक्षक बढ़ाते हैं। भले ही माँ जन्म देती है, प्रारम्भिक गुरु होती है, पर हमारा पूरा का पूरा भविष्य हमारे शिक्षकों के हाथ में होता है। वह जैसे चाहें, वैसे हमें संवार सकते हैं। हमारे भविष्य का निर्धारण कर सकते हैं। यह सच है कि समाज की नवचेतना को आकार एवं दिशा देने में शिक्षक की अहम् भूमिका होती है। मैं सम्पूर्ण शिक्षक समाज एवं अपने समस्त गुरुजनों को इस श्लोक के साथ नमन् करती हूँ -
अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं, येन चराचरं |
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै, श्री गुरुवे नम : ||
(जो अखण्ड है, सकल ब्रह्माण्ड में समाया है, चर-अचर में तरंगित है, उस (प्रभु) के तत्व रूप को जो मेरे भीतर प्रकट कर मुझे साक्षात दर्शन करा दे, उन गुरु को मेरा शत शत नमन है अर्थात वही पूर्ण गुरु है | )
शिक्षक के बिना एक सभ्य समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यदि हम गंभीरता से सोचें, तो हमें लगेगा कि शिक्षक न होते, तो क्या होता। समाज कहां जाता। वास्तव में शिक्षक समाज का दर्पण व निर्माण वाहक है। यही कारण है कि समाज ने हमेशा से शिक्षक को सर्वोपरि माना। प्राचीन समय से लेकर आज तक शिक्षक की गरिमा में कहीं भी कोई कमी नहीं आई है। आज भी विद्यार्थियों की नजर में शिक्षक समाज ही सर्वोपरि होता है। शिक्षक ही उनके आदर्श होते हैं। भले ही उम्र बढ़ने के साथ विचार में बदलाव आ जाये, पर शिक्षक को देखकर सम्मान स्वतः ही प्रकट हो जाता है। शिक्षक वह पुंज है जो अज्ञान के तमस को मिटाकर ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित करता है। शिक्षक को समाज में सदैव ही सर्वश्रेष्ठ पद पर रखकर उसकी बुद्धिमता का सम्मान किया गया है। बड़े-बड़े राजाओं-महाराजाओं के मस्तक शिक्षक के चरणों में नतमस्तक हुए है। शिक्षक भले ही धन-सम्पदा से धनी न हो, लेकिन सम्मान के मामले में वह सर्वोपरि है।
शिक्षक समाज को बदल देते हैं। हमारे सामने अनेक उदाहरण हैं, जिसमें शिक्षकों ने समाज को नई दिशा दी है। इस देश में कई शिक्षक ऐसे हुए जिन्होंने अपनी शिक्षण कला के माध्यम से देश का गौरव बढ़ाया है। उन्होंने सामान्य से बच्चों को महान बना दिया। नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनाने वाले व शिवा (शंभू) को छत्रपति शिवाजी बनाने वाले शिक्षक स्वामी रामकृष्ण परमहंस व समर्थ गुरु रामदास ही थे। चाणक्य जैसे शिक्षक के आक्रोश ने चन्द्रगुप्त मौर्य का निर्माण कर घनानंद के अहंकार का मर्दन कर दिया था। यह अद्भुत है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु भी शिक्षक के रूप में युवाओं को संबोधित करते हुई। ऐसे अनेकों को उदाहरण हैं, जो शिक्षकों की महत्ता को दर्शाते हैं। इन्हीं कारणों से शिक्षकों के प्रति स्वतः श्रद्धा उत्पन्न होती है। वह जीवन जीने की राह दिखाते हैं। यह भी सच है कि ठीक से जीवन जीना ही ईश्वरत्व की प्राप्ति है। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में भी कहा गया है -
जि पुरखु नदरि न आवई तिस, का किआ करि कहिआ जाई |
बलिहारी गुर आपने जिनि, हिरदै दिता दिखाई ||
(बलिहारी है उस गुरु को, जिन्होंने उस परम पुरख अर्थात परमात्मा को हृदय के भीतर दिखा दिया | यही गुरु का गुरुत्व है | उनके पूर्णत्व का प्रमाण है | खरी कसौटी है |)
आज हमारा देश भारत शिक्षा के नये आयाम स्पर्श कर रहा है। विद्यालयी शिक्षा हो या महा विद्यालय, विश्वविद्यालय में प्रदान की जाने वाली औपचारिक, अनौपचारिक, आधुनिक शिक्षा ही हो…शिक्षण में शिक्षक और शिक्षिका की निरंतर बढ़ती और नई उचाईयां छूती भूमिका आज सर्वमान्य है।
भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुसार, “ शिक्षक का स्तर किसी समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक लोकाचार को दर्शाता है…” यह सच ही कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने शिक्षक के स्तर से अधिक ऊपर नहीं जा सकता है। यह भी एक वास्तविकता है कि भारत सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली नीतियां और योजनायें केवल प्रशिक्षित, कुशल, समर्थ और समर्पित शिक्षकों के प्रयास से ही साकार हो सकती हैं। यदि हमें अपने देश को एक विकासशील से विकसित देश बनाना है तो इसकी पहली शर्त ही 100% साक्षरता दर को प्राप्त करना है और आज हमारे शिक्षक इस दिशा में अपना पुरजोर योगदान दे रहे हैं।
हालांकि बदलते दौर में शिक्षा का स्वरूप न सिर्फ काफी हद तक बदल गया है, बल्कि काफी हाईटेक हो गया है। यह समय की मांग है। इसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना जरूरी है। इंटरनेट युग में शिक्षक की भूमिका भी बहु आयामी हो गई है। आज शिक्षक पारम्परिक शिक्षा के साथ ही इंटरनेट के माध्यम से भी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं और इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षक का अपने छात्रों से सीधा संपर्क नहीं होता है। वे अपने कोर्स या विषय की शिक्षा देते समय ही अपने छात्रों की संभावित शंकाओं और प्रश्नों का समाधान भी कर देते हैं। विशेष रूप से उच्च और उच्चतम शिक्षा हेतु इंटरनेट शिक्षण का अपना ही महत्व है और इसके साथ ही शिक्षक की भूमिका भी अपने क्लासरूम से निकल कर जिला, प्रान्त, राज्य, राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक विस्तारित हो जाती है और यह भी सच है कि आधुनिक शिक्षक अपनी यह बहु आयामी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।
कसक
हालांकि मन में इस बात को लेकर काफी कसक है कि बदलते दौर में शिक्षक समाज में काफी बदलाव आया है। शिक्षा को शिक्षक की भांति नहीं आजीविका के साधन के रूप में प्रदान किया जा रहा है। शिक्षक के आचरण में बदलाव देखने को मिल रहा है। बाजारवाद के प्रलोभन ने शिक्षक की छवि को भी चोटिल करने का प्रयास किया है। धनलोलुपता और चकाचौंध ने शिक्षक को सम्मोहित किया है। अब शिक्षक के रुप में शिक्षा का सौदा करने वाले सौदागर पनपने लग गये है। स्कूल सीखने की जगह न होकर मोल भाव की दुकान में परिवर्तित हो चुके है। पैसे देकर मनचाही डिग्री खरीदी जा सकती है। ऐसे संक्रमण काल में शिक्षक की सही पहचान धूमिल होती जा रही है। लोगों की गलत अवधारणा यह कहते पायी गई कि शिक्षक कौन बनता है ? शिक्षक जैसे महत्वपूर्ण इकाई को काल का ग्रास लग गया है। विगत सालों में घटित कई घटनाओं ने शिक्षक के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाये है। इस पेशे का पूरी तरह से व्यवसायीकरण होता जा रहा है। यह अत्यंत दुखद है। शिक्षा संबंधी घोटाले कष्ट देते हैं।
हालांकि भारत में ऐसे आदर्श व प्रेरणादायी शिक्षकों की कोई कमी नहीं है। वे शिक्षा के ऐसे कुलदीपक है जो जग को अपनी रोशनी से रोशन कर रहे है। ऐसे शिक्षक ही वास्तविक मायनों में सम्मान के असल हकदार है।
जय हिन्द