राहुल वर्मा
लफ़्ज़ों में बेरूखी
दिल में मलाल रहने दो।
हमसे मुत्तालिक वो
तल्ख़ ख्याल रहने दो।
बाक़ी जो बचे हैं वो
दिन भी गुज़र जाएंगे।
उलझे हुए सब वक्त के
हैं सवाल रहने दो।
बेतकल्लुफ़ है आज
हमसे हरेक ग़म तेरा।
अब किस बात पर
उठे नए सवाल रहने दो।
कुछ भी नहीं बदला
वक्त के निज़ाम का।
फिर तुम ही क्यों बदलो
बहरहाल रहने दो।
अब उम्र ही कितनी
कैदे हयात की।
रंजिशें गर दिल में है तो
इस साल रहने दो।
कुछ दिन इन आंखों में
समन्दर बसर पाए।
कुछ दिन इन ज़ख्मों को
खुशहाल रहने दो।
Devendra Singh Chouhan
(owner)
कोविड 19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए क्या मोदी जी को पुनः पहले जैसा कठोर लोक डाउन लगाना चाहिए।
राय देवें।
Priyadarshi Tiwari
योजनाएं सारी धरी की धरी रह जाती है
जब ईश्वर की मर्जी चलती है
राज सिंह
1-यदि मिट्टी से आदम(Adam) बन सकता है तो फिर मैल से गणेश क्यों नही?
2-यदि आदम की पसली से पैदा होकर हव्वा(Eve) आदम की बेटी नही हुई तो फिर ब्रह्मा से पैदा होकर सरस्वती ब्रह्मा की बेटी कैसे हो गयी?
3-यदि जन्नत की गधी का सर स्त्री का हो सकता है तो फिर गणेश का सर हाथी का क्यों नही?
4-यदि चाँद के टुकड़े हो सकते है तो फिर सूरज क्यों नही निगला जा सकता?
5-यदि ऊंट का मूत्र दवा हो सकता है तो गौ मूत्र क्यों नही?
6-यदि एक जानवर सुवर धर्म की दृस्टि से खराब हो सकता है तो फिर धर्म की दृष्टि से गौ सम्मानित क्यों नही हो सकती?
7-यदि नबियो के वंश बेटियो और दासियों के नियोग से चल सकते है तो फिर सनातन में नियोग से आपत्ति क्यों?
8-यदि मुर्तिया बोल नही सकती तो अल्लाह की भी हिम्मत नही की किसी को दिख जाए वर्तमान समय में या बात कर ले?
9- यदि अल्लाह को मस्जिद की जरूरत है तो फिर भगवान के मन्दिरो से आपत्ति क्यों?
10- यदि भगवान भारत से बाहर नही गया तो अल्लाह भी अरब के रेत से बाहर नही निकला?
11- यदि पत्थर में शैतान हो सकता है तो पत्थर में भगवान की भावना से आपत्ति क्यों?
12- यदि धरती आकाश इस्लाम में बोल सकते है तो फिर सनातन में इन्हें देव मानने से आप्पति क्यों ?
घनश्याम शर्मा 'राधेय'
"धर्मो रक्षति रक्षितः"
अर्थात, धर्म की रक्षा करो, तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा। धर्म ही इस चराचर जगत और सभी जीवों के जीवन का मूल है। धर्म के बिना इस सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए, धर्मानुसार आचरण करें, सत्य का ग्रहण करें, और असत्य का त्याग करें।
धर्म सनातन है, समय के साथ इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। इसे न हीं उत्पन्न किया जा सकता है न ही नष्ट किया जा सकता है यह तो ईश्वर प्रदत होता है। जो सृष्टि के कल्याण के लिए ईश्वर के उपदेशात्मक रूप में वेदों के माध्यम से उत्पन्न होता है इसलिए इसे वैदिक सनातन धर्म कहा जाता है, जो सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है और सदा ही रहेगा।
4. धर्म क्या है
आजकल संप्रदायों और विभिन्न मतमतांतरों ने धर्म शब्द का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप धर्म के नाम पर अनेक झगड़े हो रहे हैं। यह प्रश्न उठता है कि धर्म वास्तव में है क्या? कई लोग धर्म को रिलीजन' या 'मजहब के रूप में देखते हैं लेकिन ये शब्द धर्म के वास्तविक अर्थ से बिल्कुल भिन्न हैं।
रित्तीजन या मजहब किसी विशेष मत, पंथ या संप्रदाय के अनुयायियों के लिए बनाए गए नियमों का समूह है। यह एक विचारधारा है, जो केवल उस विशेष पंथ संप्रदाय के अनुयायियों के कल्याण की बात करती है। इसके विपरीत, धर्म का अर्थ संप्रदाय या रिलीजन से नहीं है संपूर्ण सृष्टि से हैं। वैदिक सनातन धर्म संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए निर्धारित सर्वोत्तम नियमों का नाम है, जो ईश्वर द्वारा प्रदत्त होता है और किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता।
धर्म का शाब्दिक अर्थ
धर्म शब्द "धू" धातु से बना है, जिसका अर्थ है "धारण करना। "धारयति इति धर्मः" अर्थात, जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। अब यह विचार करना चाहिए कि धारण करने योग्य क्या है- श्रेष्ठ या तुच्छ? निश्चित रूप से श्रेष्ठ ही धारण करने योग्य है। इसीलिए, श्रेष्ठ आचार-विचार, श्रेष्ठ कर्तव्य और कर्म ही मनुष्य के लिए धारण करने योग्य होते हैं।
जिस आचरण से मनुष्य को आत्मिक, मानसिक और शारीरिक उन्नति प्राप्त होती है, और जिन गुणों को धारण करने से व्यवहारिक सुख एवं मोक्ष की सिद्धि होती है, वही आचरण या कर्तव्य धर्म कहलाता है। वेदों में मनुष्य के लिए जो कर्तव्यों का विधान किया गया है, वही सच्चा धर्म है और उसके विपरीत अधर्म है।
धर्म केवल मनुष्य का नहीं बल्कि समस्त सत्रि के कण-कण का है। सुष्टि के प्रत्येक वस्तु का है अपना एक धर्म होता है. ईश्वर ने सष्टि के प्रत्येक पदार्थ को जिस-जिस उद्देश्य से बनाया है अगर वहां उन गुणों को धारण करता है वही उसका धर्म बन जाता है जो ईश्वर द्वारा उसे प्रदान
किया गया है।
उदाहरण के लिए:
अग्नि का धर्म उसकी उष्णता है।
जल का धर्म उसकी शीतलता है।
सूर्य का धर्म है प्रकाश देना।
वायु का धर्म उसकी चंचलता, शुष्कता है।
अब सूर्य ने प्रकाश को धारण किया है तो सूर्य का धर्म प्रकाश देना है, अब अगर वह प्रकाश देना बंद कर दे, तो वह अधर्मी कहलाएगा। उसी प्रकार, मनुष्य को सदाचार, सत्य भाषण परोपकार, अहिंसा आदि गुणों को धारण करने के लिए बनाया गया है। अगर वह इन गुणों को छोड़कर विपरीत गुणों को धारण करता है, तो वह अधर्मी माना जाएगा। अतः श्रेष्ठ गुणों को धारण करना ही मनुष्य मात्र का एकमात्र धर्म है। जिसे मानव धर्म कहा जाता है।
इस प्रकार, ईश्वर ने सृष्टि के प्रत्येक जीव प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक विशिष्ट कर्म निर्धारित किया है। जब कोई जीव अपने निर्धारित कर्म का पालन करता है, तो वह धर्माचरण कहलाता है, और अगर वह इसके विपरीत करता है, तो उसे अधर्माचरण कहा जाता है। इसी के अनुसार जीवों को उनके कर्मों का फल भी मिलता है।
Anil nayal singh
दूध दही हो थाली में, पेप्सी,
कोला नाली में।ये स्वदेशी का पुनः आह्वान है।
जय हिंद