हर घड़ी सुखमय
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*हर घड़ी सुखमय* पसन्द नहीं ये जीवन तो दुनिया में क्यों आया ऐसा क्या हो गया जो ये संसार तुझे ना भाया सुख के हर साधन ईश्वर ने तेरे लिए ही बनाए नहीं बनाई ऐसी दुनिया जो त्यागनी पड़ जाए भूल क्या हुई तुझसे उसको थोड़ा तो पहचान पाप किये तुमने फिर दोषी क्यों हुआ भगवान तमोप्रधान अपवित्र जीवन तुमने ही अपनाया ईश्वर का बनाया हर नियम तुमने ही ठुकराया जब तक धर्म बना रहा सब रिश्तों का आधार दुख भी साहस कर ना सका जो आए तेरे द्वार संकल्प स्वार्थ का जिस दिन मन में तेरे आया दुख के हर कारण ने तेरे जीवन में प्रवेश पाया तेरा तेरा कहकर तुमने प्रभु को कुछ ना सौंपा स्वयं की पीठ पर तुमने लोभ का ख़ंजर घोंपा दुख का यही कारण तुमने जीवन भर पनपाया इसीलिए हर दुख ने तेरे जीवन में डेरा जमाया तेरे कर्मों का हिसाब कोई दूसरा क्यों चुकाएगा जो कुछ किया है तुमने वही तेरे सामने आएगा कर्मों की गति पहचानकर सुधार ले अपने कर्म संसार की बातें छोड़कर अपना ले ईश्वरीय धर्म अपना बुद्धियोग जब तूँ परमात्मा से लगाएगा हर दुख को झेलने की ताक़त तूँ उससे पाएगा दुख की सारी बेड़ियां तुझे टूटती नजर आएगी तेरे जीवन की हर घड़ी सुखमय बनती जाएगी *ॐ शांति*
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