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तर्पण १३ | मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ | दुष्यन्त कुमार शायरी कल्पना की ही नहीं, सच की भी बात करती है; सच जो हमारे आस-पास है; हमारा सच, आपका सच, दुष्यंत का सच।...
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