आम तौर पर केले के पत्तों में खाना परोसा जाता है। प्राचीन ग्रंथों में केले के पत्तों पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है। आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले के पत्तों का प्रयोग होने लगा है। हर्बल आचार्य डॉ. दीपक आचार्य बताते हैं कि डिस्पोजल थर्माकोल में खाना खाने से उसमें उपस्थित रसायन पदार्थ खाने में मिलकर पाचन क्रिया पर प्रभाव डालता है, जिससे कैंसर होता है एवं डिस्पोजल के गिलास में बिस्फिनोल नामक कैमिकल होता है जिसका असर छोटी आंत पर पड़ता है।
ये हैं लाभ
पलाश की पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।
केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।
रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है। पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है।
आम तौर पर लाल फूलों वाले पलाश को हम जानते हैं पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है। इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासीर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है।
जोड़ों के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है। पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है।
लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलो को उपयोगी माना जाता है।
ये भी मिलेगी राहत
सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिट्टी में दबा सकते हैं।
न पानी नष्ट होगा, न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा।
न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे, न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी।
अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी।
प्रदूषण भी घटेगा
सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह दबाने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है। पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा। सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा, जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है।