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जब चुटकियों में गिर गया था विशाल मराठा साम्राज्य

सन 1802 तक भारत के 80% हिस्से पर शासन करने वाला साम्राज्य 1818 तक बिखर जाता है और कारण सिर्फ एक "आपसी फूट"। यदि मराठा साम्राज्य का पतन नही होता तो अंग्रेज भारत मे कभी नही घुस पाते और यह देश आज भी सोने की चिड़िया होता।

हर साम्राज्य का एक दस्तूर होता है कि पहले तो समाज एकजुट होकर बुराई से लड़ता है, बुराई हार जाती है और वह समाज राष्ट्र का निर्माण करता है इसके बाद वही समाज आपस मे बैर रखना शुरू कर देता है जिसके नतीजे में राष्ट्र का पतन हो जाता है।

सन 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदुराष्ट्र की पुनःस्थापना के लिए मराठा साम्राज्य की नींव रखी। 1757 में मुगल सल्तनत खत्म हो गयी और मराठा साम्राज्य में उसका विलय हो गया। 1775 में अंग्रेजो ने भारत पर कब्जा करने के लिए युद्ध किया और मराठाओ ने उन्हें भी पराजित कर दिया, अंग्रेजो को हराकर मराठा साम्राज्य एशिया में सबसे बड़ी ताकत बना।

उस समय मराठा साम्राज्य में भी 2 सबसे बड़ी शक्तियां थी ग्वालियर के महाराज महादजी सिंधिया और इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर मगर 1801 तक स्थिति बदल गयी महादजी सिंधिया की मृत्यु हो चुकी थी और उनके 22 वर्षीय पुत्र दौलतराव राजा थे। इसके अतिरिक्त इंदौर में भी अहिल्याबाई की जगह 23 वर्षीय यशवंत राव होल्कर राज कर रहे थे।

उस समय 25 वर्षीय बाजीराव द्वितीय पेशवा थे, पेशवा को कैसे शासन करना चाहिए इसका उन्हें कोई ज्ञान नही था। इसके पूर्व जितने भी पेशवा रहे वे सब कमाल के रणनीतिकार थे मगर बाजीराव द्वितीय अयोग्य थे।

राजपूताने को लेकर सिंधिया और होल्कर एक दूसरे से भीड़ गए। सिंधिया ने पेशवा को अपनी मुट्ठी में करके होल्कर वंश के खास सदस्य को मरवा दिया। यह हत्या मराठा साम्राज्य के साथ साथ भारत को भी ले डूबी। 1802 में यशवंत राव होल्कर ने सिंधिया को उज्जैन में पराजित किया और पुणे आकर पेशवा को भी हरा दिया।

पेशवा घबराकर अंग्रेजो के पास जा पहुँचा और बस यही भारत का बना बनाया इतिहास कचरा हो गया। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजो को कई जागीरे देने का आश्वासन दिया बदले में अंग्रेजो ने उसे वापस पुणे ले जाकर पेशवा बनाने का वादा किया।

होल्कर और सिंधिया को अपनी गलती का आभास हुआ और वे देश के लिए एकजुट हो गए लेकिन इन्हें झटका तब लगा जब बड़ौदा के राजा आनंद राव गायकवाड़ ने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया, पेशवा, होल्कर सिंधिया और भौसले भी नए थे युद्धों का अनुभव सिर्फ गायकवाड़ को था।

फिर भी ये तीनो अंग्रेजो से जा भिड़े और इस तरह दूसरे आंग्ल मराठा युद्ध की शुरुआत हुई। इस युद्ध मे भी मराठे अंग्रेजो से ज्यादा ताकतवर थे और उन्हें हर मोर्चे पर मात दे रहे थे लेकिन अनुभव की कमी मराठो को ले डूबी। मराठे थोड़े राजपूताने को छोड़कर पूरे उत्तर भारत से समाप्त हो गए। बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजो ने फिर से पेशवा बना दिया।

बाजीराव द्वितीय जब बड़ा हुआ तो उसे अहसास हुआ कि उसने पेशवाई का सम्मान मिट्टी में मिला दिया है उसका राष्ट्रवाद जागा और 1817 में उसने दोबारा होल्कर, सिंधिया तथा भौसले की मदद से अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इंदौर में यशवंत राव होल्कर चल बसे थे और उनके 10 वर्ष के बालक इंदौर का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। सिंधिया उत्तर भारत में अकेले घिरे हुए थे और किसी तरह दिल्ली को दोबारा जीतने का असफल प्रयास कर रहे थे।

अंग्रेजो और मराठो के बीच तीसरा युद्ध हुआ इसमें मराठो की ना सिर्फ पराजय हुई बल्कि साम्राज्य का पतन भी हो गया और बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजो ने पुणे से निकालकर बिठूर में 8 लाख रुपये सालाना की जागीर दे दी, पेशवाई और मराठा साम्राज्य जैसे ही समाप्त हुए भारत माता एक बार फिर 130 वर्षो के लिए गुलामी की जंजीरों में जकड़ दी गयी।

अब आप खुद अंदाज लगाए सन 1800 तक पूरे भारत पर राज कर रहा एक साम्राज्य 1818 में कैसे समाप्त हो गया?

पहला कारण था मराठा राजाओ ने राजपूताने से संबंध अच्छे नही रखे, मराठा राजपूतो से चौथ वसूल रहे थे मगर उनके राज्य के हितों को लेकर सजग नही थे ना ही उन्हें अपने बराबर मानते थे। राजपूत मराठो की तुलना में कम शक्तिसम्पन्न होंगे मगर वे वीर थे, मराठे यदि अंग्रेजो के विरुद्ध उन्हें साथ लेते तो क्या आज इतिहास कुछ और नही होता?

दूसरी कमजोरी थी जरूरत से ज्यादा जोश, यशवंतराव होल्कर अपने अपमान को लेकर इतने उत्तेजित हो गए कि मराठा राजधानी पुणे पर ही धावा बोल दिया। उनकी इस कार्रवाई के कारण इंदौर का खजाना खाली हो गया और हजारों मराठा सैनिक भी मारे गए इसके अलावा मराठो की आपसी फूट लंदन तक पहुँच गयी।

मराठाओ की तीसरी गलती थी अनुशासनहीनता, प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध में मराठे बहुत अनुशासन से लड़े जबकि दूसरे युद्ध में वे हर किसी मोर्चे पर भीड़ रहे थे, वे दिल्ली, पुणे, गुजरात और राजपूताने में एक साथ अंग्रेजो से लड़ रहे थे नतीजा विजय कही भी नही मिली।

मराठाओ के पतन का चौथा कारण स्वयं नियति थी सारे योद्धा अनुभवहीन थे और अनुभवी योद्धा गायकवाड़ अंग्रेजो के साथ थे। संभाजी महाराज, पेशवा बाजीराव प्रथम और महादजी सिंधिया जैसे महानुभव मराठो को छोड़कर जा चुके थे। नतीजा यह हुआ कि मराठे मरने मारने से अधिक कोई रणनीति नही बना सके और अपने अंत तक स्वयं पहुँच गए।

ये थे वे चार आधारस्तंभ जिन्होंने मराठा साम्राज्य को गिराने में अहम भूमिका निभाई, आज यही चार कारण किसी ना किसी रूप में भारत के पतन में लगे हुए है। मराठाओ की जो दास्तान लिखी गयी है वह मात्र 200 वर्ष पुरानी है इसलिए अपने इतिहास को इतना जल्दी ना भुलाए की इतिहास हमें ही भुला बैठे।

परख सक्सेना