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समसामयिक विश्लेषण - 11

जो गाज कभी पंडित नेहरू पर गिरी थी वही बहुत जल्द अब मोदीजी पर गिरना तय है। मोदीजी की कार्यक्षमता और लीडरशिप संदेह से परे है मगर भीष्म पितामह का वह अंतिम संवाद हमे दोबारा समझ लेना चाहिए कि

"वह राजा और समाज अपने देश के लिए शुभ नही होते जो वर्तमान की कसौटियों के लिये अपने अतीत को उत्तरदायी ठहरा कर संतुष्ट हो जाये"

चीन आज की पोस्ट का कॉन्टेक्स्ट नही है। यदि अंदरूनी राजनीति को नजरअंदाज करके वैश्विक स्तर पर देखे तो गलवान में चीन के 43 सैनिक मारे गए जबकि भारत के मात्र 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। इससे एक संदेश तो गया है कि चीन के सैनिक उतने शक्तिशाली नही है जितना एक प्रोफेशनल आर्मी के होने चाहिए।

चीन की इसी कमजोरी का फायदा जापान ने उठाया और चीन-जापान के बीच विवादित दो टापूओं पर ना सिर्फ दावा ठोका बल्कि अपनी पनडुब्बियां समुद्र में उतार दी। मैंने पिछले वर्ष अपने एक विश्लेषण में लिखा था कि चीन के विरुद्ध रूस हमारा दोस्त है मगर अमेरिका हमारा भाई है। वह पोस्ट आपको मेरे टेलीग्राम चैनल पर इस पोस्ट के नीचे मिल जाएगी। जैसा मेरा अवलोकन था अमेरिका के रक्षा सचिव माइक पोम्पिओ ने भी बयान दे दिया है कि अब अमेरिकी सेना को वे इंडो स्पेसिफिक रीजन में भेजेंगे।

अमेरिका का हिन्द महासागर में आना एक शुभ संकेत है क्योकि हमारी नौसेना चीन जितनी शक्तिशाली नही है लेकिन हमारी थलसेना उत्तर में बहुत शक्तिशाली है पर बड़ा सवाल नेपाल का है। नेपाल का प्रधानमंत्री केपी ओली पूरी तरह से अयोग्य और चीन का मोहरा साबित हुआ है, चीन ने फिलहाल नेपाल के एक गांव और कुछ 11 किलोमीटर की जमीन भी हड़प ली है।

ऐसे में इतना तो तय है कि अगले चुनावो में ओली की सरकार गिर जाएगी और नई सरकार भारत तथा अमेरिका के आगे हाथ फैलाएगी, तब हमारे सामने वही स्थिति होगी जो नेहरू जी के सामने कश्मीर की थी। नेहरूजी ने सिर्फ इसी शर्त पर मदद भेजी की कश्मीर भारत मे मिले। यही अब हमें नेपाल के साथ करना होगा, नेपाल स्वयं का भारत मे विलय करे या फिर अकेले ही चीन से लड़े।

हो सकता है जब तक नेपाल का भारत मे विलय हो तब तक चीन इसके एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर ले और 70 साल बाद मोदी जी पर भी नेहरूजी की तरह कुछ अंधभक्त कटाक्ष करे कि देखो इन्होंने नेपाल की जमीन चीन को दान कर दी। यह निश्चित रूप से होना तय है इसीलिए मैने कहा था कि मोदीजी के सामने नेपाल और पंडित नेहरू के सामने कश्मीर एक जैसा मुद्दा है।

जैसा करोगे वैसा भरोगे, बहरहाल सरकार किसी की भी हो चीन नेपाल के विरुद्ध हम सरकार के साथ है, युद्धकाल में सरकार पर आक्रामक होने से बचे और वर्तमान तथा पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के लिए कोई अपमानित शब्द प्रयोग ना करे।

दूसरे के हाथ मे बंदूक हो तो उसे इंस्ट्रक्शन देना आसान है मगर जब बंदूक अपने हाथ मे हो तो एक निशाना भी सही नही लगता, आशा है सभी ने मेले में यह प्रयोग किया होगा। राजनीति भी कुछ ऐसी है जो गद्दी पर बैठा है उसे ज्ञान देना आसान है मुश्किल है तो बस गद्दी पर बैठकर अपने दिए हुए ज्ञान पर अमल करना।

परख सक्सेना