वर्ष 1993
गांव मामखोर , गोरखपुर
मास्टर साहब का 20 साल का गबरू जवान बेटा अभी अभी अखाड़े से लौटा ही था कि छोटी बहन पर नजर पड़ गई।वह धीरे-धीरे सुबक रही थी । भाई ने पूछा कि क्या हुआ? जबाव सुनते ही वह बाहर भागा और सीधे चौराहे पर पहुंच गया । वहां चाय की दुकान पर बैठे राकेश तिवारी को इशारे से बुलाया , नजदीक आने पर जेब से कट्टा निकाला और प्वाइंट ब्लैंक शूट कर दिया ।
एक घंटे पहले राकेश तिवारी ने उसकी बहन को देख कर सीटी बजाई थी ।
यह श्रीप्रकाश शुक्ला के हाथों पहली हत्या थी ।
पुलिस से बचने के लिए वह बैंकाक भाग गया।
लौटा तब तक उसके नाम की दहशत ऐसी थी कि किसी ने दिनदहाड़े हुई हत्या में गवाही तक नहीं दी ।
रंगबाजी और सुपारी किलिंग में उसका पहला शिकार था विधायक वीरेंद्र शाही ।1997 में शुक्ला ने शाही को लखनऊ में दिनदहाड़े मार डाला । शाही खुद बड़ा क्रिमिनल था ।मगर इस हत्या के बाद यू पी के सारे मशहूर अपराधियों के होश उड़ गए। हरिशंकर तिवारी ने तो जेल में बंद रहना ही सेफ समझा । श्रीप्रकाश शुक्ला का डंका पूरे पूर्वांचल में बजने लगा ।
तभी उसे बिहार के एक बाहुबली की सुपारी मिली । उसने इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान पटना में इलाजरत मंत्री बृजबिहारी प्रसाद को अस्पताल में घुस कर मार डाला ।
अब वह चाहता तो राजनीति में आकर या ठेका पट्टा लेकर आराम से रह सकता था मगर उसके मुंह में खून लग चुका था। उसने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर दी
उसने यू पी के सी एम कल्याण सिंह की सुपारी ले ली
कीमत थी 6 करोड़ रुपए
इस खबर के लिक होते ही पूरा प्रशासन स्तब्ध रह गया ।
अब आनन फानन में पूरे राज्य से चुनिंदा पुलिस के जवानों को मिलाकर एस टी एफ बनाया गया और लक्ष्य दिया गया....श्री प्रकाश शुक्ला जिंदा या मुर्दा।।।
शुक्ला रंगबाज था और बड़बोला भी था।शराब और अय्याशी में भी माहिर था।उसे उस समय लौंच हुए सेलफोन का बड़ा शौक था और उसका 5000 रुपया रोज सिर्फ सेलफोन पर खर्च था।
मौज मजे के लिए वह गाजियाबाद के लक्ष्मीनगर में एक फ्लैट में रहने लगा था । उसके पास 14 सीम थे लेकिन एक नंबर था जो उसे बहुत पसंद था । उसी नंबर पर कॉल करके उसे किसी ने सूचना दी कि कल सवेरे रांची किसी बाहुबली के बेटी की शादी में जाना है। पुलिस एलर्ट हो गई मगर शुक्ला की नींद नहीं खुली और वह एयरपोर्ट नहीं पहुंच सका ।
फिर दिन में वह अपनी नीली सिएलो कार में सड़क मार्ग से लखनऊ के लिए निकला ।गाड़ी खुद शुक्ला चला रहा था ।अनुज सिंह साथ में बैठा था और सुधीर त्रिपाठी पीछे बैठा था ।
मोहननगर फ्लाई ओवर पर एक पुलिस की गाड़ी ने उसे ओवरटेक किया
शुक्ला को शक हुआ तो उसने स्पीड बढ़ाया तभी सामने से इंस्पेक्टर वी वी चौहान ने अपनी जिप्सी भिड़ा दी ।
तीन और गाड़ियां वहां पहुंच गईं
शुक्ला और उसके साथियों ने अपने पिस्टल से फायरिंग शुरू कर दी
मगर पुलिस ने अत्याधुनिक हथियारों से गोलीबारी की और सबों को वहीं मार डाला
इस तरह पूरा हुआ ओप्रेशन वजूका ..
और मात्र 25 साल की उम्र में यू पी का पहला डौन एनकाउंटर में मारा गया