Brahmcharini Bharti Chaitanya भारती चैतन्य's Album: Wall Photos

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*।। राम-राम ।।*

*"हिंसा का बदला"*


आपको एक सच्ची घटना राजस्थान राज्य के, चुरू जिले के सुजानगढ कस्बे के पास के गाँव की है। जो कल्याण के अंक वर्ष ३६ में छपी हुई है।
भिजवाई जा रही है।

यह कहानी बहुत वर्षों पहले, मेरी सुनी हुई होने के कारण मुझे भी स्मरण हो आई।

इसी के साथ ही
ऐसी ही एक सच्ची घटना, श्री जयदयालजी गोयन्दका जी, जिनका जन्म चुरू( राजस्थान ) में हुआ था। जिन्होंने गीताप्रेस गोरखपुर की स्थापना की थी। और गीता भवन स्वर्गाश्रम ऋषिकेश में सत्संग कार्यक्रम चलाने के लिये, भवन बनवाये, सत्संगियो के रहने भोजन आदि की व्यवस्था भी करते
थे।

परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज भी, श्री जयदयालजी गोयन्दका जी के साथ में तथा श्री सेठजी, श्री भाईजी के परमधाम पधारने के बाद, वर्षों तक गीता भवन स्वर्गाश्रम ऋषिकेश में
सत्संग -कार्यक्रम को चलाते रहे। आज भी भगवान् व संतो की कृपा से, गीता भवन स्वर्गाश्रम ऋषिकेश में, इन संतो की वाणी से सत्संग कार्यक्रम चलते हैं।

इन्हीं श्री जयदयालजी गोयन्दका जी ने, अपने बचपन की घटना बताई गई थी। वह घटना परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की पुस्तक " सुन्दर समाज का निर्माण" में लिखी गई
है।

वह जैसी मुझे स्मरण है, उसको संक्षेप रूप में कहने का प्रयास किया जा रहा है। पूरी तरह जानने के लिये "सुन्दर समाज का निर्माण" पुस्तक में पढ़ें।

यह सच्ची बात इस तरह से है :- चुरू के एक सज्जन जो रुपये कमाने के लिये बाहर गये थे। उनके उपर कर्जा था । वे शीघ्र ही वापस चुरू आकर सारा कर्जा उतार दिया । फिर उनके लड़का हुआ था। उसका विवाह करने के पश्चात, बिमार होकर जब वह मरने की स्थिति में आगया।
तब आसपास के लोग उनके घर में आकर, उस बिमार लड़के के पास रात्रि में बैठे थे । जब वह पिता उसकी मरने की स्थिति देखकर रोने लगा। तब उस बिमार लड़के ने पिता की ओर देखकर बोला, काम करने से पहले सोचता, अब रोता है। तब पास में बैठे लोगों ने पिता से पूछा, यह लड़का क्या कहता है ? तो पिता तो समझ गया । लेकिन लोगों को कहता है, यह तो बादीमें( उन्माद) में ऐसे ही बकता है। फिर उस लड़के ने कहा, मैं ऐसे ही बकता हूँ तो, बागला( वैश्य जाति में उपजाति) की हवेली में जाकर देखो, उसको पिछे से चोर चोरी करने के लिये फोड़ रहे हैं। रात्रि होने से उस समय तो कोई गया नहीं। सेठजी कहते थे हम बच्चे थे। सुबह वहाँ गये तो लोग उन चोरों के पैरों के निशानों को ढ़क रहे थे।

उस लड़के ने पास में बैठे सब लोगोंको पिता के सामने कहा यह मेरे को मारकर, 10000/- (दस हजार) रुपये लाया था। मेरा नाम बंगाली था। वो ही मैं इसके लड़का जन्मकर आया हूँ। इतना खर्चा तो विवाह में लग गया। इतना बिमारी में लग गया। और बाकी बचा है, उसको लेने के लिये फिर और आऊँगा।

लोगोंने कहा इस बणिये की बेटी ने क्या अपराध किया? जो इसको विधवा करके जा रहा है। तो उसने कहा मैं और ये दोनों यात्रा में साथ होगये।
इसको पता चल गया मेरे पास रुपये हैं।
रात्रि में इस भुँजारी के घर ठहरे थे । तब रात्रि में इसने व भुँजारी ने मिलकर मेरे को मारकर रुपये ले लिये। अब यह मेरी पत्नी वही भुँजारी है।


इस बात को मैं अच्छी तरह से, संक्षेप से कहने का प्रयास किया गया
है। इसमें रही त्रुटी के लिये क्षमा चाहता हूँ।

*इस सच्ची बात को परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज ने, अपनी पुस्तक "सुन्दर समाज का निर्माण" में लिखा है। इस पुस्तक का जिनके पास PDF हो ग्रुप में भेजी जाने की कृपा करें।*
*यह पुस्तक मेरे पास भी 5-10 के लगभग मिल सकती है।*

*लेकिन भण्डार में पुस्तकें कार्टून ,आदि में भरी हुई होने से पूरा भण्डार देखने पर अवश्य मिल जायेगी।*
*लेकिन मुझे पुस्तक का PDF बनाना नहीं आता है।*

*साधक-संजीवनी, साधन-सुधा-सिन्धु, साधन-सुधा-निधि,गीता प्रबोधनी, कुछ छोटी -छोटी पुस्तकें तो दिवार के द्वारा बनाई गई* *आलमारीयों के खाँचो में सामने ही दिखती रहती है।* *अभी डाक से भिजवाया जाना सम्भव नहीं है। कोई भी सत्संगी भाई बहिन जो सीकर ( राजस्थान ) से छूट के साथ ले सकते हैं।* *यह कार्य दुकानदारी के हिसाब से नहीं किया जाता है। सीमित मात्रा में केवल सत्संगी जनों के हितार्थ, भगवान् व संतो की कृपा से हो रहा है।*


*मुझे यह पुस्तक न तो "साधन-सुधा-सिन्धु" में मिली, और न बाद में* *छपी पुस्तक " साधन-सुधा-निधि" में मिली है।*

*मैं तो अभी तक यही समझ रहा था कि, श्री स्वामीजी महाराज की सभी पुस्तकें इन दोनों पुस्तकों( साधन-सुधा-सिन्धु व साधन-सुधा-निधि) में आगई है। लेकिन आज इस पोस्ट के निमित्त, इस बात का खुलासा हुआ कि सभी पुस्तके नहीं आई है।*


*यह पुस्तक मुझे बहुत अच्छी लगती है। इसलिये सीकर ( राजस्थान) व बाहर होनेवाले सत्संग- कार्यक्रमों में, श्री स्वामीजी महाराज की अन्य पुस्तकों के साथ,यह पुस्तक भी मंगवाई जाती रही है।*

*आज "सुन्दर समाज का निर्माण " पुस्तक "साधन-सुधा-सिन्धु" व " साधन-सुधा-निधि" दोनों ग्रन्थों में, न मिलने पर मुझे लगा यह पुस्तक अगर इन ग्रंथों में सम्मिलित हो जाय तो सोने में सुहागा हो जायेगा।*

*मेरा उन लोगों से नम्र निवेदन है कि, जिनका गीताप्रेस गोरखपुर से सम्पर्क है।*

*वे उनसे पूछताछ करने की कृपा करें कि, इस पुस्तक को किसी दूसरी पुस्तक में सम्मिलित कर लिया गया है? तो* *बताने की कृपा करें। यह पुस्तक किस* *पुस्तक के अन्दर मिलाकर नया नाम क्या गया है?* *क्योंकि पहले भी सुविधा के हिसाब से कई पुस्तकों को मिलाकर एक पुस्तक में मिला दिया गया।*

*इस दास का भी गीताप्रेस गोरखपुर से निवेदन करने का विचार है।*

*लेकिन कोई भी सज्जन सीधे ही, शीघ्रता से यह कार्य करने के निमित्त, बने तो बड़ी कृपा होगी।*

*अगर यह पुस्तक भूल से, सम्मिलित होने से रह गयी हो तो अब, "साधन-सुधा-निधि" में सम्मिलित करने की कृपा करें। आपकी बड़ी कृपा होगी।*

*गीताप्रेस गोरखपुर से, संसार का बहुत बड़ा भारी उपकार हुआ है, हो रहा है और होता रहेगा। उनको कोई उलाहने की दृष्टि से नहीं, कहा जा रहा है।*

*उनसे निवेदन करना है कि इन दोनों ग्रन्थों में, सम्मिलित होनेसे और भी कोई पुस्तक श्री स्वामीजी महाराज की रह गई हो तो, उन सभी को " साधन-सुधा-निधि" में सम्मिलित करवाने की कृपा करें।*


*क्योंकि "साधन-सुधा-निधि" अभी एक वर्ष पहले ही छपी है। और " "साधन-सुधा-सिन्धु" से पृष्ठ संख्या भी कम है। फिर वे जैसे उचित समझे तो "साधन-सुधा-सिन्धु" में जोड़ देवें। अथवा बाकी बची सभी पुस्तकों को, एक साथ अन्य नाम से प्रकाशित कर दिया जावे।*


*अभी तो गीताप्रेस में, श्री सेठजी श्री स्वामीजी महाराज के प्रति भाव रखने वाले, श्रद्धालु सज्जन अधिकारी पदों पर आसीन है। आसानी से यह कार्य हो सकता है।*


*भविष्य में आने वाली पीढ़ीयों के लाभ को, ध्यान में रखते हुए यह कार्य शीघ्र करवाने की कृपा करें।*