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  • मेरी रुह का हिस्सा

    अब मेरे लिए बाहर की दुनियाँ तेरे बिना बिलकुल अलग़ सी लगती है, बिलकुल काली अँधेरी सी जिंदगी । जैसे  काले कत्थे घने से रंग में रंगे पेड़ों के तने, पेड़ पर बैठा कोई काक भी काला और पेड़ की छाया भी काली  . . . . . . . . .! लगता है सारे भेद भुलाकर सबकुछ इसी कालेपन में समां गए है। यूँ लगने लगता है खु...