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अमर अटल का मुक्तक काव्य

  • अमर अटल का मुक्तक काव्य"
    २५ दिसम्बर का वह दिन था,
    पैदा हुआ स्वाभिमानी वह रत्न था।
    कहां किसको खबर थी,
    भारत माता इतनी प्रबल थी।
    हमने अभी होश संभाला था ,
    अटल सत्य को देश गुरु बनाया था।
    वह आत्मा नहीं परमात्मा के अंश थे,
    वसुन्धरा का भोग अमर अटल सत्य थे।
    उनकी सहसा वाणी समतावाद का प्रतीक थी,
    देश धर्म से परे मानवतावादी सोच थी ।
    कोई कहता पितामह भीष्म हैं,
    वह अजातशत्रु कहलाये सबके मन की भींद हैं ।
    सागर से गहरी सोच अटल को महान बनाती है,
    अमर अटल की विचारधारा देश भक्ति का मार्ग दिखाती है।
    देखो आज राष्ट्र शोक में डूबा है ,
    ध्रुव तारा अपने आसमां से छूटा है।
    आज देश में भीड़ नहीं अश्रु का सैलाब आया है,
    वह अमर अटल म्रत्यु जीत के कैलाश आया है।
    लोकतंत्र में प्राण प्रतिष्ठा करने वाले अमर अटल,
    कहां गये हो छोड़ हमें कर निश्चल और निशब्द।
    भारत माता आज तेरा सपूत अनंत सोया है ,
    देख आज हर भारतीय अकट खूब रोया है ।
    देखो जीवन का युग खत्म हुआ है ,
    लेकिन विचारधारा का युग शुरू हुआ है।
    निर्णायक थे दूरदर्शी थे,
    देश विनायक थे समर्पित थे।
    नेतृत्ववादी थे अजातशत्रु थे,
    उत्कर्षवादी थे आसमां के ध्रुव थे।
    वह अमर अटल जन बिहारी थे,
    वह अमर अटल कठिन सरल पथधारी थे।
    अटल अमर की विरह वेदना,
    हिन्दी हिन्दुस्तान थी विकट चेतना।
    वह बढे तभी लड़े घबराये नहीं ,
    वह डटे तभी हटे बलखाये नहीं।
    आज ह्रदय शोक में डूबा जग संसार,
    अमर अटल रहे नहीं रुठा हर भगवान ।
    राजनीति में उजाला पोषित करने वाले'
    अब हमारे बीच नहीं स्वराज घोषित करने वाले।
    सहसा जाग उठी ह्रदय मन की पीड़ा ,
    कैसे निशब्द हुयी अमर अटल की वीणा।
    हिन्दुस्तान का गौरव अटल था अटल ही रहेगा,
    स्वाभिमान का अजातशत्रु अमर था अमर ही रहेगा।
    लोकतंत्र का पथ प्रदर्शक ,
    छोड़ गया देश को लथपथ।
    राग भय द्वेष से लड़ने वाली वाणी थे,
    देश जगत पर मिटने वाले अटल बिहारी थे।
    राजनीति को स्वच्छ बनाने वाले थे,
    जाति धर्म से पहले विकास कराने वाले थे।
    वह राजनीति से पहले सामाजिक प्राणी थे,
    घनघोर अंधेरों में उजाले को दिये की बाती थे।
    राजनीति के करतब में अटल नीति की परिभाषा थी,
    रणनीति में मतभेद मगर देश के लिये एक होने की जिज्ञासा थी।
    वह अटल सिद्धांतवादी'
    वह अमर हिन्दुस्तानी,
    वसुन्धरा के भोग का स्वामी,
    वह अमर अटल वरदानी।
    साथी पथ का था'
    भय भी डरता था।
    वह मांझी पत का था,
    शह भी करता था।
    भारत का अनमोल रत्न हमसे दूर हुआ,
    देखो सारे जहां के लोगों को गम खूब हुआ।
    भारत माता का लाल,
    देखो कर गया सबको बेहाल,
    जमीं आसमां भी रोया,
    अश्रु का आ गया सैलाब।
    आज भारतीयता को सच्ची श्रद्धांजलि है ,
    अजरअमर अटल को यह मिशाल मिली है।
    धन्य धन्य वह मां जिसने अटल सोच जन्मी है ,
    अजातशत्रु की मिशाल अमरअटल को मिली है।
    दलगत राग भरे लोकतंत्र में अटल अनुरागी थे,
    भाव भरे जनतंत्र में वह सफल अनुभागी थे।
    अटल युग की शुरुआत बड़ी पथरीली थी ,
    हिन्दू हिन्दी हिन्दुस्तान की लड़ाई बड़ी जमीनी थी ।
    पथ चल कर वह कब हारने वाले थे,
    पगडंडी पर वह चलते कहां रुकने वाले थे।
    हर जगह अटल सत्य,
    मां भारती का गौरव अटल बढ़ाते थे,
    बांछें खिल जाती थीं'
    वह अटल सत्य जब बतलाते थे।
    रवि से तेज कवि अटल सत्य लिखते थे'
    निर्भय निश्चल लिखता अटल माँ भारती के बेटे थे।
    वह शब्दों की बाली से घर्षण करते थे,
    स्याह हुई जवानी से वह संघर्ष करते थे।
    वह रोज लिखते मिटाते शब्द ध्वनि करते थे'
    वह अक्सर काल के कपाल पर लिखते मिटाते थे।
    गुरु आपको तहदिल से ,
    कोटि कोटि प्रणाम हमारा है,
    तू ही गुरु तू ही वेदना है,
    तू ही माँ भारती के राष्ट्र का देवता है।
    संघ बने संघर्षों से ,
    संग लड़े वर्षों तक',
    कभी न सूखा पानी,
    यह अमर अटल जुबानी,
    रागों के बीच अनुराग बना,
    अमर अटल हिन्दुस्तान बना।
    यह अटल की जीवन गाथा है ,
    यह अटल राजधर्म की परिभाषा है।
    आजाद भारत के अमर अटल स्वराज थे,
    जनतांत्रिक दिलों पर राज करने वाले मनराज थे।
    आज लोकतंत्र की बड़ी हानी है ,
    अमर अटल युग अनंत की कहानी है।
    आज फिर सहसा वह निशब्द चल पढ़ा है ,
    देखो लोकतंत्र का विवेक अनंत शून्य खड़ा है।
    आज ह्रदय पीड़ा ने झकझोरा है'
    अमर अटल ने जमीं को छोड़ा है।
    उसे कवि कहूं या राजधर्म का बेटा,
    जिसने हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान हर जहन समेटा,
    उसे रवि कहूँ या राष्ट्र कर्म का नेता,
    जिसने जनसेवा का भाव घरघर फेंटा।
    भारत को स्वर्ग बनाने वाले अटल वरदानी,
    कहां गये तुम वीर अटल अमर बलिदानी।
    अनथक प्रयासों ने अटल को अमर बनाया है ,
    रवि का कवि कवि का राग जलाकर अनुराग बनाया है।
    तब जाकर कहीं अटल ने अमर राष्ट्र धर्म निभाया है,
    मनराज किया संघर्षों से अमर अटल स्वराज बनाया है।
    भारत भारती की महिमा का मंडन करने वाले ने,
    देश की सम्प्रभुता पर राजधर्म की वीणा का अटल राग सुनाया है।
    मैं नही कह सकता,
    आप अमर हो गये हो,
    मेरे ह्रदय की अभिलाषाओं में,
    अभी आप जिंदा हो हम जिंदा हैं।
    मैं नही समझ सकता,
    आप अनंत अविनाशी हो,
    आपको अमर मैं करुंगा,
    या वह जो भारतवासी हो।
    मैं स्वीकार नही कर सकता'
    आपकी मौत से ठनी का त्याग पत्र,
    मैं तो पथिक ठहरा,
    आपकी उस विचारधारा का,
    जिस पथ पर आपने पथिक बन,
    देश धर्म संभाला था।
    आप सींच गये वह लोकतंत्र,
    जहां हर जीव हुआ स्वतंत्र।
    आपकी वाणी वंदना थी,
    मन कर्म बचन से सोंच देवता थी।
    आज अमर अटल एक सत्य है ,
    जैसे कि आप लोकतंत्र के प्राणतत्व हैं।
    परमपरा का प्रतीक रहे,
    जनतंत्र नें सब ठीक रहे,
    जनसभा की प्रीत रहे'
    अटल अमर लोकतंत्र के गीत रहे।
    आसमाँ का ध्रुव तारा,
    सारे जहां का प्यारा।
    मन बचन कर्म का साथी ,
    अजर अमर अटल अनुरागी ।
    आज मां भारती का बेटा शव में कूच गया,
    सहसा ही भारत का जन गम में डूब गया।
    भूख से, प्यास से लड़ने वाला संदेश,
    दुनिया के पटल पर रख गये अपना देश।
    वह जंग लड़ा करते जनतंत्र विचारों से,
    अक्सर अटल समझाते रहे,
    लोगों को राजधर्म से बांधे रहे,
    कूच करो विचारों से,
    लोकतंत्र नहीं मिलता हथियारों से।
    आज निशब्द कैसे रह सकता हूं,
    अपने ह्रदय की पीड़ा बयां कर सकता हूं।
    मनवा भारी सा होठवा सुखारी सा'
    गम उमड़ घुमड़ पड़ा है अटल प्रलयकारी सा।
    ऐक ऐसा कवि जो कविता करता था,
    एक ऐसा रवि जो राजनीति का देवता था,
    आज वह अमर अटल हो गया है ,
    जो लोकतंत्र का उदेश्य होता था।
    भारत से पूछ या भारती से,
    लोकतंत्र चलता है जनतंत्र की आरती से।
    यहां वहां का गठबंधन ,
    हो सकता है विचारो का मंथन।
    तोड़ नही सकता मत का बंधन ,
    यहां वहां का गठबंधन ।
    तेरी सोच का अभिनंदन,
    तू है इस देश का कुन्दन।
    हंसी से कसी रही वेदना,
    आज कहां रुकेगा जग रुदन।
    आज तू भी निशब्द है ,
    आज हम भी अटल निशब्द हैं।
    तेरे पथ से तेरे राग से,
    राष्ट्र को मिला अनुराग,
    सह्रदय सहेजेगें हिन्दुस्तान,
    सदा अमर अटल का राग।
    उत्कृष्ट व्यापी रचना कर डाली,
    पोखरण सफल हिन्दुस्तान में दम डाली।
    विश्व मंच ने सीखा,
    राजधर्म की रेखा,
    वह पथ या पगडण्डी ,
    मार्ग दर्शक या सतसंगी,
    आज जहन में वेदना बनी,
    अमर अटल के शोक में,
    आज लेखनी रुदाली हुई ।
    सह्रदय जगत की श्रद्धांजस्वीकार करो'
    हे महानुभाव अमर अटलजग पथगामनी बनो।
    आज हमारे बीच अटलसत्य नहीं हैं,
    तो मालूम होता है कि हमरक्त नहीं हैं।
    कुछ ऐसी पीड़ा वह शांत अटल की वीणा,
    राग हमारे जीवन में मगर अनुराग अटल सत्य नहीं हैं।
    सहसा कूच करते थे,
    अनंत मजबूत होते ते।
    वह आपकी ताकत थी,
    लहजा विचार जंग करते थे।
    अटल से अभिलाषाओं को राग मिला था,
    जब हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान स्याह मिला था।
    वह अटल पक्ष विपक्ष एक नदी के दो किनारे थे,जो
    मिल तो नही सकते थे मगर बहती धार को संभाले थे।
    क्या हिन्दू क्या मुसलमान क्या सिख क्या इसाई,
    अमर अटल ने सबको राजधर्म की भाषा सिखा ई।
    आज अथल अनंतपुरवासी हो गये,
    उस पथ पर जिसपर उनके अनंत साथी खो गये।
    लो अब अमर हुये अटल,
    जो विश्व का है पटल।
    लोकतंत्र का उदय राग,
    लो अस्त हुआ कवि का आत्मसात् ।
    क्यो अब कोई अटल सत्य आयेगा,
    हां कोई संकल्प व्रतधारी कर पायेगा।
    उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी अटल,
    जैसा क्या अब कोई होगा पटल।
    कहां जाओगे धरती को स्वर्ग बनाने वाले,
    क्या लौटोगे नही मानवसेवा की अलख जगाने वाले।
    जीवन पथ का साथी मौत से हारा है ,
    कभी लड़ाई वश की नही हारा है।
    आज हमारी विरह वेदना अमर अटल का चिंतन है,
    क्यों चल पड़ा वह आज अनंत की यात्रा,
    अवसाद में आई जिंदगी का मंथन है।
    राग भय द्वेष से परे,
    आटल जिंदगी और मौत से लड़े।
    कभी हारे नही संवेदनाओं से,
    वह निर्णायक होते रहे योजनाओ से।
    अपने देश की मिट्टी को समझने वाला,
    अब नहीं हमारे बीच कोई अटल सत्य कहने वाला।
    रग रग में थी देश भक्ति की पुकार,
    पल पल बनी उनकी लेखनी शक्ति की तलवार।
    कोई कहता तो अटल से शिकायत है ,
    क्या अटल जैसा भी कोई अधिनायक है।
    सोने की चिड़िया आजाद हुयी थी ऋण से,
    करने वाले वह अटल वीर अनुरागी थे ढ़्रढ़ से।
    कहने को अब कुछ बचा नही है,
    अमर अटल जैसा कोई महान नही है।
    क्या हिन्दू क्या मुस्लिम की आवाज अटल थे,
    अमर अटल की वेदना आवाम पटल थी।
    मैं पूंछता हूं बार बार,
    क्यों कूच किया तुमने,
    अभी तो और जीना था,
    मौत से क्यों पूंछ लिया तुमने।
    क्या फिर लौट कर आओगे इस जग में,
    संवेदनाओं के ढेर में अमर अटल हो गया देश में।
    देशबंधु को कवि राग बनाया था,
    अमर अटल ने जीत को रविप्रकाश बताया था।
    बाबा